वायनाड से कांग्रेस के सांसद रहे राहुल गांधी की संसद की सदस्यता रद्द कर दी गई है. शुक्रवार (24 मार्च) को लोकसभा सचिवालय ने नोटिफिकेशन जारी करते हुए इस बात की जानकारी दी.
सचिवालय ने घोषणा की कि साल 2019 में मानहानि के मामले में गुजरात की सूरत कोर्ट के दोषी ठहराए जाने और सजा सुनाए जाने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी अब संसद के सदस्य नहीं रहे.
नोटिफिकेशन जारी होने के बाद अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि राहुल गांधी का अगल कदम क्या होगा. वो कौन से रास्ते हैं जिससे राहुल गांधी इस मामले से बाहर आ सकते हैं. कुछ कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि दोषी ठहराए जाने के बाद कांग्रेस सांसद ऑटोमेटिकली अयोग्य हो गए थे. वहीं, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि अगर वो सजा को पलटवाने में कामयाब हो जाते हैं तो इस कार्रवाई को रोका जा सकता है. तो आइए जानते हैं इसके बारे में-
क्या कहना है कपिल सिब्बल का?
इस पूरे मामले को लेकर वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल का कहना है, “अगर ये (अदालत) केवल सजा को सस्पेंड करती है तो ये काफी नहीं होगा. निलंबन या कन्विक्शन पर स्टे होना चाहिए. वो (राहुल गांधी) संसद के सदस्य के रूप में तभी बने रह सकते हैं जब कन्विक्शन पर स्टे हो.” अगर हाईकोर्ट फैसला रद्द नहीं करता है तो राहुल गांधी को अगले 8 सालों तक चुनाव लड़ने की परमिशन नहीं दी जाएगी.
अन्य कानून के विशेषज्ञों की राय
राहुल गांधी अब इस फैसले को कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं. वहीं कांग्रेस नेताओं ने इस कदम की वैधता पर सवाल उठाते हुए कहा कि केवल राष्ट्रपति ही चुनाव आयोग के परामर्श से सांसदों को अयोग्य ठहरा सकते हैं. इस मामले पर राहुल गांधी की टीम के मुताबिक, हाईकोर्ट में इस फैसले को चुनौती देने की तैयारी की जा रही है. अगर सजा के निलंबन और आदेश पर रोक की अपील वहां स्वीकार नहीं की जाती है तो वे सुप्रीम कोर्ट का रुख करेंगे.
एक्सपर्ट का कहना है कि जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत सांसद या विधायक सजा के सस्पेंड रहने और दोषी करार देने वाले फैसले पर स्टे लगने के बाद ही अयोग्यता से बच सकते हैं. एक विशेषज्ञ ने कहा कि दो साल या उससे ज्यादा की सजा पर कोई भी जन प्रतिनिधि अपने आप अयोग्य हो जाएगा. हां, अगर अपील करने पर सजा निलंबित होती है तो अयोग्यता भी अपने आप सस्पेंड हो जाएगी. अगर ऐसा नहीं हुआ तो सजा काटने के बाद अयोग्यता की अवधि 6 साल की होती है. मतलब 8 साल का सवाल है.