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राहुल गांधी के पास सदस्यता रद्द होने के बाद क्या हैं कानूनी विकल्प !

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कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता रद्द कर दी गई है. शुक्रवार को लोकसभा सचिवालय ने एक अधिसूचना जारी कर राहुल गांधी की सदस्यता रद्द करने की जानकारी दी.

अधिसूचना में बताया गया है कि केरल की वायनाड लोकसभा सीट से सांसद राहुल गांधी को सज़ा सुनाए जाने के दिन यानी 23 मार्च, 2023 से अयोग्य करार दिया जाता है.

मानहानि मामले में राहुल गांधी को गुरवार को कोर्ट ने दो साल की सज़ा सुनाई है. सज़ा सुनाते ही कोर्ट ने इस सज़ा को एक महीने के लिए महीने के लिए टाल दिया था.

इस फ़ैसले के बाद पूर्व एडिशिनल सॉलिसिटर जनरल के सी कौशिक से विस्तार में बातचीत की और इस फैसले के क़ानूनी पहलूओं और राहुल के पास बचे विकल्पों को समझने की कोशिश की.

स्पीकर बाध्य थे या कार्रवाई के लिए इंतज़ार किया जा सकता था?

गुरुवार को सज़ा सुनाते ही कोर्ट ने उन्हें एक महीने का समय दिया था ताकि वो अपील कर सकें.

इसलिए कयास लगाए जा रहे थे कि लोकसभा में उनपर फ़िलहाल कोई कार्रवाई नहीं होगी.

के सी कौशिक कहते हैं कि स्पीकर का ये कदम जल्दी में उठाया गया लगता है.

उन्होंने कहा, “ये मामला ऐसा नहीं है, जिसमें स्पीकर महोदय को इतनी जल्दीबाज़ी करने की ज़रूरत थी. उनको अपना फैसला एक महीने के लिए टाल देना चाहिए था, क्योंकि जब कोर्ट ने ही अपना फ़ैसला एक महीने के लिए टाल दिया है, तो टेक्नीकली सज़ा सस्पेंड है, इसपर स्पीकर का फ़ैसला लेना मेरी राय में न्याय के सहज़ सिद्धांत के ख़िलाफ़ है.”

हालांकि बीजेपी का कहना है कि कानून के मुताबिक दोषी करार होने के बाद सदस्यता रद्द करने के लिए स्पीकर को नोटिस देना ज़रूरी था.

क्या राहुल स्पीकर के फ़ैसले को चैलेंज कर कर सकते हैं?

राहुल गांधी के पास अधिकार है कि अपनी सदस्यता रद्द करने के स्पीकर के फ़ैसले के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकते हैं.

कौशिक के मुताबिक “राहुल गांधी के पास अपील का अधिकार है. भारतीय संविधान में अगर किसी के अधिकारों का हनन होता है तो संवैधानिक कोर्ट (हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट) में जा सकते हैं. वो अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट भी जा सकते हैं और अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट भी जा सकते हैं.”

हाई कोर्ट से राहत मिली तो क्या होगा

राहुल गांधी सूरत की कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में अपील करेंगे.

अगर हाईकोर्ट से वो बरी हो जाते हैं, या फिर उनकी सज़ा को कम कर दिया जाता है, तो भी खुद ब खुद उनकी सदस्यता फिर से बहाल नहीं होगी. इसके लिए राहुल गांधी को फिर से हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ेगा.

कौशिक के मुताबिक, “मेरा मानना है स्पीकर खुद अपने ऑर्डर को रिव्यू नहीं करेंगे. वो किसी हाई कोर्ट या संविधान पीठ के फ़ैसले का इंतज़ार करेंगे. “

वायनाड में क्या चुनाव कराए जा सकते हैं?

राहुल को अगर स्पीकर के फ़ैसले के ख़िलाफ़ राहत नहीं मिलती हैं, तो फिर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में उन्हें मानहानि के मामले में अपील करनी होगी और उन्हे स्टे नहीं मिला तो ये प्रक्रिया चलेगी और इस बीच वायनाड सीट पर चुनाव की घोषणा भी की जा सकती है.

कौशिक के मुताबिक, “यदि चुनाव आयोग सीट को खाली घोषित कर चुनाव की घोषणा करती है, तब एक तीसरा लिटिगेशन हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा है कि चुनाव आयोग के ऑर्डर को चैलेंज किया जा सका है.”

“लेकिन अगर रिटर्निंग ऑफ़िसर एक बार चुनाव का शेड्यूल जारी कर देता है, तो मुझे नहीं लगता कि कोई राहत हाईकोर्ट से मिल पाएगी.”

यानी कि अगर राहुल गांधी वहां चुनाव को रोकना चाहते हैं, तो जैसे ही चुनाव आयोग सीट को रिक्त घोषित करे, उन्हें हाईकोर्ट जाना होगा.

राहुल की सज़ा कम हुई तो?

मजिस्ट्रेट कोर्ट ने राहुल गांधी को दो साल की सज़ा दी और ऊपरी अदालत को अगर लगता है कि सज़ा ज़्यादा है तो कोर्ट उसे कम भी कर सकती है.

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•धारा 8(1) के मुताबिक़ दो समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना, रिश्वत लेना या फिर चुनाव में अपने प्रभाव का ग़लत इस्तेमाल करने पर सदस्यता जा सकती है.

•धारा 8 (2) के तहत जमाखोरी, मुनाफ़ाखोरी, खाने-पीने की चीज़ों में मिलावट या फिर दहेज निषेध अधिनियम के तहत दोषी ठहराए जाने और कम से कम छह महीने की सज़ा मिलने पर सदस्यता रद्द हो जाएगी.

•धारा 8 (3) के तहत किसी अगर किसी व्यक्ति को दोषी ठहराया जाता है और उसे दो साल या उससे अधिक की सज़ा मिलती है तो वह सदन के सदस्य बने के योग्य नहीं रह जाएगा. अंतिम निर्णय सदन के स्पीकर का होगा.

इसलिए राहुल गांधी की सज़ा की अगर हाईकोर्ट दो साल से कम कर देता है, तो मुमकिन है कि वो भविष्य में चुनाव लड़ने के योग्य रहें या फिर अपनी मौजूदा सीट बचा लें.

राहुल के अब क्या विकल्प हैं?

कौशिक के मुताबिक, “सबसे पहले राहुल गांधी को सूरत के कोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ ऊपरी अदालत में अपील दायर करनी चाहिए.”

“अपील दाखिल करते ही उन्हें अंतरिम एप्लीकेशन की बात करनी चाहिए और सज़ा पर स्टे की मांग करनी चाहिए. हो सकता है कि उनके वकील ये एडवाइस करें कि वो स्पीकर के ऑर्डर को भी चैलेंज करें.”

स्पीकर के ऑर्डर को हाई कोर्ट में चैलेंज किया जा सकता है.

क्या है पूरा मामला

वायनाड से सांसद राहुल गांधी ने कथित तौर पर ये बयान 2019 में लोकसभा चुनावों के दौरान कर्नाटक के कोलार में दिया था.

उन्होंने कथित तौर पर ये कहा था कि “सभी चोरों का उपनाम (सरनेम) मोदी क्यों है?”

राहुल गांधी के ख़िलाफ़ भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 के तहत केस दर्ज किया गया था. भारतीय दंड विधान की धारा 499 में आपराधिक मानहानि के मामलों में अधिकतम दो साल की सज़ा का प्रावधान है.

सज़ा के एलान के बाद याचिकाकर्ता पुर्णेश मोदी ने मीडिया से बातचीत में कहा, “हम इस फ़ैसले का दिल से स्वागत करते हैं. दो साल की सज़ा के एलान से खुश है या नहीं सवाल ये नहीं है. ये सामाजिक आंदोलन की बात है. किसी भी समाज, जाति के ख़िलाफ़ बयान नहीं दिया जाना चाहिए. और कुछ नहीं. बाकी हम अपने समाज में बैठकर आगे चर्चा करेंगे.

राहुल गांधी की वकीलों की टीम ने मीडिया से बातचीत में बताया कि सुनवाई के दौरान राहुल गांधी ने कहा कि वो किसी समुदाय को अपने बयान से ठेस नहीं पहुंचाना चाहते थे.