बैलाडिला की लौह पहाड़ियों में नक्सलियों ने जिस प्रकार से अभी ट्रकों और बसों के जलाने सहित अन्य हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया है, उससे समूचे बैलाडिला में आतंक का साया गहरा गया है और अब इधर आने में सामान्य आदमी भी हिचक रहा है। इसके पूर्व बैलाडिला की पहाड़ियों की प्राकृतिक सुंदरता को देखने सैकड़ों लोग बैलाडिला क्षेत्र में पहुंचते थे। लेकिन अब तो पर्यटकों की आमद दूर की बात है सामान्य आदमी भी यहां आने से कतरा रहा है। जबकि बैलाडिला की इन पहाड़ियों की नैसर्गिक सुदंरता आज भी विद्यमान है और इन पहाड़ियों की चोटियों से होकर जाने वाले बादल अभी भी दिखाई पड़ रहे हैं। इस क्षेत्र को छत्तीसगढ़ का पचमढ़ी भी कहा जाता है। लेकिन यह पचमढ़ी आज नक्सलियों के कारण सन्नाटे में सोया हुआ है।
उल्लेखनीय है कि दक्षिण बस्तर की दंतेवाड़ा और बीजापुर जिले से सीमा बनाने वाली बैलाडिला की पहाड़ियां 25 से 30 किमी क्षेत्र में पसरी हुई हैं और इन पहाड़ियों में सबसे उंचे नंदीराज शिखर की उंचाई समुद्रतल से चार हजार फीट से ऊपर आंकी गई है। इस खूबसूरत शिखर पर और आस-पास फैली पहाडिय़ों में नैसर्गिक सुंदरता सहित घने जंगल भी विद्यमान है। इसी जंगल क्षेत्र में बस्तर की दुर्लभ प्रजातियों की जड़ी- बुटियों का भी भंडार है। यहां पर हिंसक वन्य प्राणियों के भी दर्शन हो जाते हैं तथा इन्हीं पहाड़ियों में विश्व का उत्तम गुणवत्ता का लौह अयस्क भी मिलता है। इस स्थल पर हमेशा मौसम सुहावना रहता है और ठंड के दिनों में तो इस स्थल पर अत्यधिक ठंड भी पड़ती है।
बचेली के आकाश नगर और कैलाश नगर में तो ग्रीष्म काल में भी बड़ी मुश्किल से सूर्य के दर्शन हो पाते हैं। इससे प्रभावित होकर पूर्व राजवंश के राजाओं ने अपनी ग्रीष्मकाल की तपन को दूर करने इसे गर्मी में आश्रय स्थल भी बनाया था। लेकिन अब नक्सलियों के कारण यह स्थल आम आदमी की पहुंच से दूर हो रहा है और बैलाडिला की इन पहाड़ियों में आतंक का साया रहने से आम आदमी इसे देखने नहीं आ पा रहा है।