जमीन पर लेटा और धूल से सराबोर यह बालक खेल नहीं रहा है, बल्कि कुदरती आफत झेल रहा है। कमर के नीचे का हिस्सा काम नहीं करता इसलिए हाथ और पैरों के सहारे दिनभर जमीन पर घिसटता रहता है।
वह अपना दर्द भी नहीं बयां कर पाता क्योंकि बोल नहीं सकता। उस पर गरीबी की मार ऐसी कि इस अबोध बालक को छोड़कर माता-पिता कमाने-खाने लखनऊ गए हैं। बुजुर्ग दादी और धरती मां की गोद में ही इसकी परवरिश जारी है।
रतनपुर वार्ड 11 में आबादी से दूर बियाबान में मल्ली तालाब के पार पर झोपड़ी बनाकर बुजुर्ग महिला अपने 3 पोता-पोती के साथ रह रही है। बुजुर्ग दादी को अपने इस दिव्यांग पोते का नाम भी नहीं मालूम। नाम पूछने पर पास बैठे पोते-पोतियों ने बताया गुंडल है इसका नाम।
बुजुर्ग ने उसके पिता का नाम दिनेश गंधर्व और मां का नाम जयंती बताया। गुंडल अब 4 चार साल का हो गया है। बढ़ती उम्र के साथ उसका शरीर विकसित नहीं हो पाया, इसकी वजह से वह अपने पैरों पर खड़ा होना तो दूर, बैठ भी नहीं पाता। शरीर को हरकत देकर सरकते रहना ही उसकी नियति है।
उम्र बढ़ने के साथ ही बढ़ रही मासूम के जीवन की परेशानियां
दिल में छेद भी
बुजुर्ग दादी बताती है कि गुंडल का इलाज कराया गया, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ। उनका कहना है कि जितना बन पड़ता है उतना उसके पिता डॉक्टर के पास ले जाते हैं। उन्होंने बताया कि गुंडल के दिल में भी छेद है। इसके इलाज के लिए उसके पिता उसे रायपुर तक लेकर गए थे लेकिन कहीं से कोई उम्मीद की किरण दिखाई नहीं दी।
दादी के आसरे छोड़ मां-बाप गए कमाने-खाने
गुंडल अब करीब 4 साल का हो गया है। उसके भाई-बहन स्वस्थ हैं। दादी के मुताबिक वे अनुसूचित जाति से है। पुरखों की पूंजी, जमीन-जायदाद तो है नहीं, जिससे आय हो और परिवार का भरण-पोषण हो। बच्चों को उसके पास छोड़कर बेटे-बहू कमाने-खाने ईंट भट्ठे में काम करने लखनऊ चले गए हैं। सरकारी राशन दुकान से उसे 35 किलो चावल मिलता है,इससे उसके और बच्चों के खाने की व्यवस्था हो जाती है।