नागपंचमी का नाम आते ही भगवान कृष्ण और कालियानाग के अलावा अखाड़े की भी याद आती है। नागपंचमी पर पहले जगह-जगह होने वाले इस दंगल को देखने दूर-दूर से लोग आया करते थे। जगदलपुर शहर में पहलवान गंगाचरण और कलीचरण के बीच कुश्ती होती थी। धीरे-धीरे समय के साथ यह देशी खेल समाप्त होता गया। हालात ये हैं कि शहर में आज न तो कोई अखाड़ा है और न ही कोई युवा पहलवान।
इस विषय पर जब शहर के बीते जमाने के धुरन्धर पहलवानों से चर्चा की तो पुरानी यादों में कुश्ती और अखाड़ों के अनुभव सुनाये तथा वे वर्तमान में इस खेल के प्रति सरकार और युवओं में अरूचि से लुप्त हो रहे इस खेल से दुखी भी हैं। 2010 के बाद शहर में कोई कुश्ती प्रतियोगिता नहीं हुई है। शहर में लगभग 20 साल से देशी अखाड़े बंद हैं। इस बीच बस्तर ओलंपिक संघ व कुश्ती संघ ने शहरवासियों के सहयोग से कुछ साल तक प्रतियोगिताओं का आयोजन किया, इसके बाद खेल विभाग ने भी कुश्ती के लिए कोई शिविर नहीं लगाया।
2010 में देश विदेश के पहलवानों ने शहर में कुश्ती के दांव-पेंच दिखाये थे। पुरानी सुनहरी यादों को याद करते हुए वरिष्ठ समाज सेवी कृष्णा राव नायडू ने बताया कि आजादी के बाद शहर में राजाओं द्वारा दंतेश्वरी मंदिर के सामने कुश्ती का आयोजन होता था, जिसमें शहर के अलावा आसपास के बड़ी संख्या में पहलवान आते थे और अपना दांव दिखाते थे। उस समय पहलवान कालीचरण और गंगाप्रसाद के बीच कुश्ती को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे।