साल का आखिरी महीना तीज-त्योहारों के नजरिये से खास रहने वाला है। दिसंबर में कई व्रत और पर्व रहेंगे। इनमें प्रदोष व्रत, मासिक शिवरात्रि, एकादशी और रुक्मिणी अष्टमी हैं। ये सभी दिन बहुत खास रहेंगे। इसी महीने की शुरुआत में हिन्दी पंचांग का अगहन मास खत्म होगा और पौष की शुरुआत भी होगी। महीने के बीच में धनु संक्रांति होगी और खरमास भी रहेगा। इस दौरान मांगलिक काम नहीं किए जाते हैं।
जानिए… दिसंबर में पड़ने वाले प्रमुख व्रत त्योहार और उनके महत्व…
गीता जयंती और मोक्षदा एकादशी (3 दिसंबर, शनिवार): इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधि विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाती है। उपवास रखा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, एक ही दिन गीता जयंती और मोक्षदा एकादशी होने से इस तिथि की तुलना मणि चिंतामणि से की जाती है।
दत्तात्रेय जयंती (7 दिसंबर, बुधवार): इस बार यह शुभ तिथि 7 दिसंबर दिन बुधवार को है। महायोगीश्वर दत्तात्रेय को ब्रह्माजी, भगवान विष्णु और भगवान शिव का अवतार माने जाते हैं और इनका अवतरण मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि को हुआ था और उन्होंने 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी। भगवान दत्तात्रेय के नाम पर दत्त संप्रदाय का उदय हुआ था। दक्षिण भारत में भगवान दत्तात्रेय के कई मंदिर हैं।
रुक्मिणी अष्टमी (16 दिसंबर, शुक्रवार): इस दिन कृष्ण, रुक्मिणी और प्रद्युम्न का पूजन करना चाहिए, साथ ही भोग लगाएं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो जातक इस दिन व्रत रखता है। सौभाग्यवती महिलाओं को भोजन कराकर वस्त्र दान करता है। मान्यता है कि इससे रुक्मिणी प्रसन्न होती हैं और घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
धनु संक्रांति (16 दिसंबर, शुक्रवार): इस दिन सूर्य धनु राशि में प्रवेश करेगा। इसे धनु संक्रांति कहा जाता है। इस दिन नदी में स्नान करने और दान-पुण्य करने की परंपरा है। इस दिन सूर्य के धनु राशि में आने से खरमास शुरू हो जाएगा। जो कि 14 जनवरी तक रहेगा। इस दौरान शादियां और बाकी दूसरे मांगलिक काम नहीं होते हैं।
सफला एकादशी (19 दिसंबर, सोमवार): साल की अंतिम एकादशी पर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान व ध्यान करके व्रत करने का संकल्प किया जाता है और विधि विधान के साथ विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार, सफला एकादशी का व्रत करने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
गुरु गोविंद सिंह जयंती (29 दिसंबर, मंगलवार): सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी हैं। इनका जन्म पौष मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को 1666 ईं. में हुआ था। इसी दिन से गुरु गोविंद सिंह का प्रकाश पर्व मनाया जाने लगा। सिख धर्म के अलावा गुरु गोविंद सिंह दूसरे धर्म के लोगों के लिए भी प्रेरणा के स्त्रोत हैं। इन्होंने ही खालसा पंथ की स्थापना की थी।