मध्य प्रदेश के मंडला जिले में एक शख्स अपनी कला के बल पर पूरे शहर को सुंदर बना रहा है. जी हां, अनोखी प्रतिभा के मालिक चित्रकार आशीष कछवाहा शहर की दीवारों पर बैगा जनजाति के सांस्कृतिक जीवन को अपनी कूंची से उतार रहे हैं.
आशीष बैगा संस्कृति की थीम को लेकर चित्र बना रहे हैं. उन्हें बैगा जनजाति की इस चित्रकारी की प्रेरणा कहां से मिली, यह पूछे जाने पर आशीष कछवाहा ने बताया कि वे कान्हा पार्क के गांवों में करीब 20 साल तक बैगाओं के बीच में रहे है. यही कारण है कि वो बड़े ही सहज अंदाज में ब्रश से दीवार पर बैगा जनजाति के जीवन को उतार रहे हैं. इससे लुप्त होती बैगा संस्कृति को एक नई पहचान मिलेगी. चित्रकार आशीष ने बताया कि बैगा वन और बाघोमं के बड़े संरक्षक हैं. लुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी बैगा जनजाति प्रकृति की पूजा करती है.
इनके संरक्षण के लिए आशीष ने अपनी कला को माध्यम बनाया है. आशीष बताते हैं कि ये एक ऐसी जनजाति है जिनपर दूसरे देश के लोग भी रिसर्च कर रहे हैं. बैगाओं को शहर के कान्हा पार्क के निर्माण के दौरान गांव से बेदखल कर दिया गया. बैगा सीधे प्रकृति से जुड़े हुए लोग हैं. उनका खान पान, रहन सहन प्रकृति के अनुरूप है. जिसके कारण वो जंगल के सबसे बड़े रक्षक है लेकिन समय गुजरने के साथ उन्हें ही बाधक मान लिया गया.
आशीष कहते हैं कि यदि जंगल को बचाना है तो बैगाओं को जंगल के साथ ही रहने देना चाहिए. बैगाओं की इसी थीम को लेकर चित्रकार आशिष मंडला शहर के दीवार पर आकर्षक पेंटिंग बना रहे हैं. इनकी पेंटिंग में बैगाओं के रहन-सहन, उनकी वेशभूषा, उनके आभूषण और बाजार-हाट के दृश्यों को दिखाया गया है.