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महतारी बुलाते रहे, संजीवनी आई और एंबुलेंस में प्रसव…

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शासन के अधीन संचालित आपात एबुंलेंस सेवाओं का बुरा हाल है। इसका ताजा उदाहरण बीती रात देखने को मिला। प्रसव दर्द उठने पर गर्भवती के परिजन महतारी एक्सप्रेस बुलाने कॉल पर कॉल करते रहे, पर एंबुलेंस नहीं आई। रात-भर दर्द से तड़पते इंतजार करने के बाद भी महतारी नहीं आई। अंततः संजीवनी पर कॉल किया गया और भोर में एंबुलेंस गर्भवती को लेकर गांव से अस्पताल के लिए रवाना हुई। आखिर समय आ गया और जंगल से गुजरते वक्त एंबुलेंस में ही डिलिवरी हो गई। सौभाग्य से जच्चा-बच्चा ठीक हैं।

पाली से करीब दस किलोमीटर दूर स्थित एक गांव का यह मामला शुक्रवार-शनिवार की दरम्यानी रात सामने आया। विकासखंड अंतर्गत ग्राम पंचायत ढुकुपथरा के आश्रित गांव कदमपारा में अनितराम रोहिदास व उसकी पत्नी सुनीता परिवार समेत निवास करते हैं। 20 वर्षीय सुनीता गर्भवती थी, जिसे शुक्रवार की देर रात करीब दो बजे प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। दर्द बढ़ते ही प्रसव का समय नजदीक आने की बात सोच परिवार ने महतारी एक्सप्रेस बुलाने 102 पर कॉल किया। काफी देर बाद बड़ी मुश्किल से कनेक्ट तो हो गया, लेकिन रात भर इंतजार करने के बाद भी महतारी एक्सप्रेस का पता नहीं था। कॉल सेंटर से कभी हरदीबाजार तो कभी कटघोरा सेंटर से संपर्क करने की बात कही जाती रही। थक-हार कर परिजनों ने संजीवनी 108 पर कॉल कर दिया, जिसके कुछ देर बाद ही एंबुलेंस गांव पहुंची। संजीवनी एक्सप्रेस को लेकर ऑपरेटर शिवकुमार व सहयोगी टिकेश्वर कुमार श्रीवास लेकर पहुंचे थे। सुनीता को लेकर वे पाली स्थित अस्पताल रवाना हो गए, लेकिन जचकी का समय आ गया और जंगल से गुजरते वक्त बीच रास्ते में ही बच्चे का जन्म हो गया। संजीवनी एक्सप्रेस में ही हुआ बच्चा व उसकी मां स्वस्थ्य बताए जा रहे हैं। सुनीता ने करीब तीन किलोग्राम वजन से पुत्र को जन्म दिया, जिन्हें पाली स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती करा दिया गया है।

ज्यादा देर इंतजार नुकसान का सबब

स्वास्थ्य विभाग की होकर भी स्वतंत्र व्यवस्था में काम कर रही आपात एंबुलेंस सेवाएं उनके कंडम हो चले वाहनों की तरह बदहाल हो चली हैं। यही वजह है जो आए दिन कॉल करने के बाद भी एंबुलेंस के मदद को नहीं पहुंचने की शिकायतें मिलती रहती हैं। इस महत्वाकांक्षी योजना से शुरुआत के वर्षों में हजारों जरूरतमंद मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य एवं जिंदगी मिली। मौजूदा स्थिति बिल्कुल विपरीत हो चली है, जिसमें इनका इंतजार करते बैठे रहना मौत का इंतजार करने जैसा हो गया है।