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प्रतिबंध के बावजूद बिक रहा साल दातून और बास्ता…

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राजवृक्ष साल को बचाने तथा तेजी से सिमट रहे बांस जंगलों को संवर्धित करने के उद्देश्य से साल दातून और बास्ता का विक्रय प्रतिबंधित है। इसके बावजूद सैकड़ों ग्रामीण प्रतिदिन हजारों साल की नई शाखाओं तथा बांस के कोपलों को काटकर हाट- बाजारों में बेच रहे हैं। इसकी जानकारी वन विभाग को भी है परंतु कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है। बस्तर को साल वनों का द्वीप कहा जाता है। विभागीय कूप कटाई, अवैध कटाई तथा ग्रामीणों द्वारा साल के नए पौधों और शाखाओं को काटकर दातून बनाकर बेचते हैं। इसके चलते साल के वृक्ष बढ़ नहीं पा रहे हैं। प्रति वर्ष हजारों साल के छोटे पौधों को काटने से साल पौधों की जो बाढ़ होनी चाहिए वह नहीं हो पा रही है। बस्तर में बांस की कोपल से बनी सब्जी को लोग बास्ता या करील कहते हैं और औषधीय मान बड़े शौक से खाते हैं। ग्रामीण जंगलों में बांस भीरा से नए कोपलों को तोड़ते हैं और इसके ऊपरी छिलके को फेंक भीतर के नरम हिस्से को बाजार में बेचने लाते हैं। इसे ही बास्ता या करील कहा जाता है। बता दें कि उपरोक्त दुर्दशा के कारण ही साल दातून और बास्ता की बिक्री पूरी तरह से प्रतिबंधित है। इसके बावजूद हजारों ग्रामीण इन्हें बेच रहे हैं, फिर भी वन विभाग द्वारा इनके खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं की गई। सेवानिवृत्त वन अधिकारी बंशीलाल विश्वकर्मा बताते हैं कि सिर्फ बास्ता सब्जी खाने के लिए बस्तर में प्रति वर्ष बांस कोपलों को नष्ट कर दिया जाता है। बास्ता के नाम पर लोगों ने बांस जंगलों को तबाह कर दिया है।

होती है कार्रवाई

इस संदर्भ में वन क्षेत्राधिकारी जगदलपुर देवेंद्र वर्मा का कहना है कि हाट- बाजारों में बास्ता बेचने वालों की सूचना मिलते ही कार्रवाई की जाती है। इस कार्य में लोगों का सहयोग बहुत जरूरी है। अगर लोग जागरूक हो जाएं और साल दातून व बास्ता न खरीदें तो ग्रामीण भी इन्हें बेचना बंद कर देंगे।