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गरीबी ने खेल छुड़वाया तो मजदूरी करने लगे, लेकिन विडंबना यह कि मिलती है सिर्फ एक हाथ की कीमत

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आज खेल दिवस है। हर जगह खिलाड़ियों का सम्मान होगा। लेकिन, 20 वर्षीय बबलू उरांव को शायद ही कोई पूछे। उरांव होटवार महुआ टोली में रहते हैं। इनमें खेल प्रतिभा की कोई कमी नहीं। झारखंड डिसएबल्ड फुटबॉल टीम की ओर से कई राष्ट्रीय टूर्नामेंट में भाग ले चुके हैं। पर, पेट की आग ऐसी कि खेल का मैदान छूट गया। मजदूरी कर अपना और परिवार का खर्च चला रहे हैं।

2007 में पेड़ से गिरने के कारण हाथ में इंफेक्शन हो गया था। हाथ गंवाना पड़ा। बचपन से फुटबॉल खेलने का शौक था। जी-तोड़ मेहनत की और झारखंड डिसएबल्ड टीम के सदस्य बने। इस दौरान झारखंड की टीम की ओर से 2017 में गोवा में आयोजित नेशनल सीपी 7 ए साइड फुटबॉल टूर्नामेंट में भाग लिया। इसके अलावा तिरूपति मे आयोजित फुटबॉल चैंपियनशिप में भी खेले।

बबलू को आने-जाने और अपना खर्चा खुद उठाना पड़ता था। परिवार की आर्थिक स्थिति खराब थी, सो खेल छोड़ना पड़ा और मजदूरी करनी पड़ी। मजदूरी में भी मुसीबत कम नहीं है। लोगों को प्रतिदिन मजदूरी के 400 रुपए मिलते हैं, पर उन्हें एक हाथ होने से 200 रुपए ही मिलते हैं।