बस्तर संभाग के सातों जिलों का हाल दसवीं-बारहवीं की बोर्ड परीक्षाओं में चाहे भले बेहाल रहता हो। यह जिले हर साल नीचे की रैंकिंग के लिए प्रतिस्पर्धा करते नजर आते हों लेकिन हकीकत यह है कि यहां के चंद शिक्षक किसी भी विभाग के अधिकारी बनने की भरपूर चाह रखते हैं। यही वजह है कि पिछले एक सप्ताह से संभाग के अलग-अलग जिलों के कई अधिकारी व शिक्षकों ने रायपुर में डेरा डाल दिया है।
गुरूवार को शिक्षा विभाग के छोटे से लेकर बड़े पद तक की सूची जारी हो गई। सूची में मनमाफिक स्थान पाने कुछ शिक्षक सफल हो गए तो कुछ मायूस हुए हैं। सबसे ज्यादा प्रतीक्षित बीइओ की सूची है, जो अब तक जारी नहीं हुई है। सूत्रों के अनुसार राज्य सरकार के एक बड़े अधिकारी इस पद के लिए कम से कम प्राचार्य की अर्हता होने की बात पर अड़ गए हैं। इस वजह से सूची जारी नहीं हो पाई है। गौरतलब है कि भाजपा शासनकाल में दर्जनों लेक्चरर मापदंडों को धता बताते इस पद पर काबिज होने में सफल हो गए थे। ऐसे लेक्चरर फिर से बीइओ पद की चाह रखते राजधानी में डटे हुए हैं तो कुछ ने इनके मार्फत समीकरण बिठाया हुआ है। बस्तर संभाग में इक्का-दुक्का को छोड़कर कोई भी बीइओ आवश्यक अर्हता नहीं रख रहे हैं। इधर इस पद की मलाई का अनुभव रखने वाले कुछ बीइओ ऐन-केन प्रकरेण पद हासिल करना चाह रहे हैं। कुछ ने कांग्रेस के बड़े नेताओं को भी साध लिया है और उनके लिए तमाम साधन व संसाधन जुटा रहे हैं। इस काम में इनकी मदद राजधानी के शिक्षा विभाग के कुछ अधिकारी भी कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक यहां से कलेक्टरों के द्वारा जाने वाली तमाम सूचियों के दर्शन ऐसे अधिकारी आवश्यक शुल्क लेकर करा रहे हैं। इसके बाद राजधानी में नए सिरे से चढ़ावा भेंट किया जा रहा है। शिक्षा विभाग में ऐसे अधिकारियों की खूब चर्चा है। इनकी चाहत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह बीइओ-सीइओ में से कोई भी पद किसी भी कीमत पर चाह रहे हैं। सत्ता से 15 साल दूर रहे कांग्रेस के नेताओं की धन लोलुपता इनके महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए सहयोगी साबित हो रही है। अगले एक-दो दिन में समूचा सीन साफ हो जाएगा। यह पता चल जाएगा कि ऐसे पदलोलुपों की फील्डिंग कितनी तगड़ी थी और धनलोलुप नेता किस स्तर तक उतरे हैं?