छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के दुर्ग (Durg) जिले के भिलाई (Bhilai) में संचालित मैत्री बाग (Matri Garden) में अब बंगाल टाइगर (Bengal Tiger) सतपुड़ा की दहाड़ अब सुनाई नहीं देगी. दो साल से कैंसर की बीमारी से जूझ रहे रॉयल बंगाल टाइगर सतपुड़ा (Satpuda) ने दम तोड़ दिया है. मैत्री बाग में ही साल 2004 में बंगाल बंगाल टाइगर लक्ष्मी ने सतपुड़ा को जन्म दिया था. मैत्री बाग में सतपुड़ा की मौत के बाद प्रबंधन में मातम का माहौल था. बीते बुधवार को सतपुड़ा की मौत के बाद उसका अंतिम संस्कार प्रबंधन द्वारा किया गया.
मैत्री बाग (Maitri Garden) प्रबंधन द्वारा मिली जानकारी के मुताबिक बंगाल टाइगर सतपुड़ा के पेट के पास एक गांठ था. जांच में पाया गया कि वह कैंसर (Cancer) की चपेट में आ गया है. करीब दो साल पहले पता चली बीमारी का मैत्री बाग में पशु चिकित्सक डॉ. जीके दुबे की अगुवाई में सतपुड़ा का इलाज शुरू किया गया. इलाज के लिए दुर्ग के अंजोरा वेटरनरी कॉलेज के चिकित्सकों के साथ ही नंदनवन रायपुर के चिकित्सक का भी मार्गदर्शन लिया गया, लेकिन गांठ खत्म होने की बजाए एक-एक कर बढ़ती चली गई.
15 दिन से सतपुड़ा ने कम कर दिया था खाना
मिली जानकारी के मुताबिक, बीते 15 दिनों से बंगाल टाइगर सतपुड़ा ने खाना भी कम कर दिया था. पांच दिनों से वह सुस्त था. बीते बुधवार की सुबह भी उसकी दिनचर्या अन्य दिनों की तरह रही. दोपहर को अचानक तबियत बिगड़ी और करीब एक बजे तक उसने दम तोड़ दिया. सतपुड़ा की मौत के बाद अब मैत्रीबाग में 2 रॉयल बंगाल टाइगर प्रजाति के बाघ रह गए हैं, जिसमें से 1 नर और 1 मादा है. बीते डेढ़ साल से सतपुड़ा का इलाज कर रहे डॉ एनके जैन ने मीडिया को बताया कि सतपुड़ा के पेट के पास एक गांठ होने के साथ वह कैंसर की चपेट में आ गया था, जिसके बाद डॉ जीके दुबे की अगुवाई में उसका इलाज शुरू किया गया था.
मैत्री बाग में बीते पांच वर्षों में पांच बाघों की मौत हो चुकी है. बीते ढाई साल में किसी बाघ के मौत की यह पहली घटना है. लगभग 15 साल की सतपुड़ा की मौत होने के बाद घटना की जानकारी जू अथारिटी ऑफ इंडिया व दुर्ग वन विभाग को दी गई. बुधवार की शाम को वन विभाग की टीम मैत्री बाग पहुंची, जिसमें एसडीओ, डिप्टी रेंजर सहित अन्य स्टाफ शामिल थे. उनकी मौजूदगी में शाम पांच बजे से मैत्री बाग परिसर में ही अंतिम संस्कार की प्रक्रिया शुरू हुई जो शाम साढ़े 6 बजे समाप्त हुई.