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जानें क्यों : ‘विनाश’ की कगार पर है इंसानों की हूबहू आवाज निकालने वाली ये मैना

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छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद पहाडी मैना को राजकीय पक्षी घोषित किया गया. इसके संरक्षण के लिए योजनाएं भी बनाई गईं, फंड की व्यवस्था भी की गई, लेकिन करीब 20 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना विलुप्ती की कगार पर है. पहाड़ी मैना की इस स्थिति के लिए सरकार की उदासिनता को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है.

पक्षियों के मामले में जानकार एएमके भरोसे कहते हैं कि इंसानों की आवाज की हुबहू नकल करने वाली राज्य की राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना को सरंक्षित करने के लिए वन विभाग द्वारा 50 करोड़ रुपये का प्रवधान रखा गया था. इसमें से करीब 20 करोड़ रुपये की राशि अब तक खर्च भी कर दी गई है. लेकिन पहाड़ी मैना का न तो प्रजनन सफल हुआ और न ही उनकी संख्या बढ़ सकी. हालांकि पहाड़ी मैना अभी भी दक्षिण छत्तीसगढ़ में प्राकृतिक रुप से जन्म ले रही हैं.

400 प्रजाति के पक्षियों की उपस्थिति
एक सरकारी आंकड़े के अनुसार छत्तीसगढ़ में 400 प्रजातियों के पक्षी हैं. इसमें 150 प्रवासीय पक्षी 12 दुर्लभ प्रजाति के पक्षी शामिल हैं. प्रदेश में पहाड़ी मैना की चार प्रजातियां पाई जाती हैं. पहाडी मैना उत्तरी आध्रप्रदेश ,ओडिशा के सिमलीपाल हिल और दक्षिण छत्तीसगढ़ में पायी जाती है. दक्षिण छत्तीसगढ़ में पायी जाने वाली मैना ही इंसानों के आवाज की हुबहू नकल करनें में माहिर होती हैं. इसलिए ही यहां की पहाड़ी मैना को ज्यादा पसंद किया जाता है.

सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी कहते हैं कि वन विभाग जंगलों के भीतर हो रहे पक्षियों के शिकार को नहीं रोक पा रहा है. 20 करोड़ रुपये जंगलों में कमरा, एनीकट बना कर अन्य संरक्षण के नाम पर खर्च किए गए, लेकिन पहाड़ी मैना के घोसले को संरक्षित करने में विभाग फेल रहा है. राहत की बात है कि बस्तर के कांगेरवेली, सुकमा, नारायणपुर में अब भी पहाड़ी मैना समूह में दिख जाती हैं.

16 वर्षो से पहाडी मैना के संरक्षण पर वन विभाग ने करोड़ों रुपये खर्च ​कर दिए. फिर भी वनांचल क्षेत्र में आज भी लोग गुलेल के सहारे पक्षियों के शिकार कर रहें है. वाइल्ड लाइफ के पीसीसीएफ अतुल शुक्ला का कहना है कि पहाड़ी मैना को लेकर बनायी गई रणनीति को बदलने की जरुरत है. इसको लेकर काम किया जा रहा है.