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नाग पंचमी विशेष : यहाँ घने जंगल में विराजित है पुरुष रूप में नाग देवता की मूर्ति

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घने जंगल स्थित सुरतीपुरा तालाब के मंदिर में नागदेवता की मूर्ति पुरुष रूप में स्थापित है। इस मंदिर में वैसे तो वर्षभर भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन नागपंचमी पर यहां दर्शन करने का अलग महत्व है। परिसर में एक दिनी मेला भी लगता है। बताया जाता है कि निमाड़ व मालवा में यह एकमात्र नाग मंदिर है जहां नागदेवता की प्रतिमा पुरुष रूप में विराजमान है। द्वापरयुगीन मंदिर को अपने वनवासकाल के दौरान पांडवों ने इस जंगल को अपना बसेरा बनाया था। अपने विश्रामकाल के दौरान पांडवों ने यहां अपनी रक्षा के लिए नाग देवता को विराजित किया।

मान्यता अनुसार च्यवनप्राश का आविष्कार करने वाले च्यवन ऋषि अपने साधनाकाल के दौरान यहीं ठहरे थे। तपस्या के दौरान उनके शरीर दीमकों ने डेरा बना लिया तभी यहां एक बांबी बन गई। इस बांबी के दो छेद से प्रकाश निकल रहा था। इस दौरान एक राजा का इस जंगल में परिवार सहित आगमन हुआ। बांबी से प्रकाश निकलने के कारण राजा की बेटी ने इसमें लकड़ी डाली। यह लकड़ी च्यवन ऋषि की आंख में लगी, जिससे बांबी से रक्त निकलने लगा।

नर्मदा पुराण में भी है मंदिर का उल्लेख

बांबी से निकलने वाला प्रकाश ऋषि की आंखों का था। राजा की बेटी की इस हरकत से च्यवन ऋषि का ध्यान भंग हो गया। वे राजा को श्राप देने को उद्यत हो गए। राजा ने ऋषि से निवेदन किया कि वे उनकी बेटी के साथ विवाह कर लें। राजा की बात सुनकर ऋषि ने अपने वृद्ध व जर्जर शरीर का वास्ता दिया, लेकिन राजा नहीं माने और बेटी के अपराध का प्रायश्चित करने पर अड़ गए। इसके बाद च्यवन ऋषि ने च्यवनप्राश का निर्माण किया। इसका सेवन कर शरीर का कायाकल्प कर राजा की बेटी से विवाह कर लिया। लोक मान्यताओं के अनुसार इस घटना के बाद नाग देवता यहां पुरुष रूप में स्थापित हो गए तभी से उनकी पूजा की जा रही है। नर्मदा पुराण में भी इस मंदिर का उल्लेख है।