राजस्थान के बारां जिले में इन दिनों मासूमियत का बाजार लग रहा है। गरीबी से जूझ रहे आदिवासी समुदाय के लोग अपने बच्चों को गिरवी रखकर पेट भरने को मजबूर हो रहे हैं। महज 30 से 40 हजार रुपए में इन बच्चों को भेड़ व ऊंट चराने के लिए गिरवी रखा जा रहा है। सरकारी दावों के विपरीत बारां जिले के आदिवासी समुदाय की यह तस्वीर दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। बारां जिले के आदिवासी क्षेत्र में नि:शुल्क राशन, शिक्षा और चिकित्सा के सरकारी दावों की पोल खोलने वाली यह दास्तां बता रही है कि पेट की भूख के आगे सब कुछ बेमानी है। यहां मां-बाप साल भर की मजदूरी के नाम पर 30 से 40 हजार रुपए में बच्चों को रेबारियों के पास गिरवी रख रहे हैं।
रेबारी इन बच्चों को भेड़ और ऊंट चराने का काम देते हैं। बारां के शाहबाद उपखंड के भील समाज के गांव आनासागर, रानीपुरा, हाड़ौता, उचावत, मंगलपुरा, खूंटी, बलारपुर आदि गांवों के 50 से ज्यादा बच्चे रेबारियों के पास गिरवी हैं। हैरान करने वाली बात यह है कि चाइल्ड लाइन और मानव तस्करी यूनिट इस गोरखधंधे को जानकर भी अनजान बनी हुई है।