जिस बेल सियाड़ी की छाल से तैयार रस्सी से बस्तर दशहरा का विशाल रथ सैकड़ों वर्षों से खींचा जा रहा है, उसकी बेल जंगलों से तेजी से खत्म हो रही है चूंकि ग्रामीण इसकी छाल और बीजों को संग्रहित कर बेचने लगे हैं। इसके चलते छाल उतारने से बेल सूख रही है, वहीं बीजों का प्रसार नहीं होने से नए पौधे तैयार नहीं हो पा रहे हैं, इसलिए इसके पत्ते से दोना- पत्तल बनाने वाले सैकड़ों परिवारों की आजीविका प्रभावित हो गई है। इधर दवा के लिए सियाड़ी बीज खोजे नहीं मिल रहा है। बस्तर के जंगलों में बेल सियाड़ी की अधिकता रही है। इसका अंग्रेजी नाम बाहुनिया वाहली है। लोग इसे माहुल, मोहलीन, देव सियाड़ी, पावुर, मालजन आदि नामों से भी पहचानते हैं।
इसके पत्ते का उपयोग हजारों साल से दोना- पत्तल बनाने, बीज का उपयोग दवा तथा छाल का उपयोग रस्सी बनाने के लिए होता आया है। तब ग्रामीण अपनी आवश्यकता के अनुसार इसका दोहन करते रहे थे, परंतु अब व्यवसाय करने लगे हैं।
रथ के लिए बनाया जाता है रस्सा
बस्तर दशहरा के विशाल रथ को खींचने के लिए सियाड़ी छाल से तैयार मोटे रस्से का वर्षों से उपयोग होता आया है। बस्तर जिला के गढ़यिा, करंजी तथा कोण्डागांव जिले के ग्रामीण इसे तैयार कर हर साल जगदलपुर लाते हैं परन्तु जंगलों में छाल नहीं मिलने से पिछले 10 साल से सियाड़ी रस्सी छोटी होती जा रही है और यह महज औपचारिकता बनकर रह गया है। इसकी जगह अब नायलॉन रस्से का उपयोग होने लगा है।
छाल का होने लगा कारोबार
वनांचल के ग्रामीण अब सियाड़ी छाल को निकालकर बेचने लगे हैं। इसका उपयोग आमतौर पर खाट- चौकी बनाने, मकान बनाते समय बांसों को बांधने, मछली पकड़ने के पारंपरिक उपकरण आदि में होता है इसलिए पूरे बस्तर के हाट- बाजारों में इसे बेचा जाता है। वन विभाग ने इसकी छाल उतारने पर प्रतिबंध लगा रखा है। बावजूद सियाड़ी छाल बेचने का धंधा जारी है।
आदिवासी मानते हैं रक्षक
महेश नाग दरभा और मदन लाल नाग कोडरीपाल बताते हैं कि आदिवासी समाज में बेल सियाड़ी के बीज को शुभ माना जाता है। जब युवक- युवतियों की शादी होती है तो उन्हें सियाड़ी बीज से तैयार माला ही पहनाई जाती है। माना जाता है कि यह बीज नव दंपत्ति को संभावित विपत्ति से बचाता है, इसलिए मांगलिक अवसरों के लिए धुरवा आदिवासी महिलाएं इसके बीज को सहेजकर रखती हैं।
बहुउपयोगी है सियाड़ी बीज
कुरंदी के बृजलाल विश्वकर्मा बताते हैं कि बेल सियाड़ी और देव सियाड़ी के बीज को औषधीय माना जाता है। बेल सियाड़ी का बीज छोटा और देव सियाड़ी का बीज बड़ा होता है। ग्रामीण पेट दर्द होने पर इसके बीज को भूनकर खाते हैं।
वनोपज व्यापारी इसके बीज को काफी मात्रा में ग्रामीणों से खरीद कर बाहर भेजने लगे हैं। जंगलों में सूकर, भालू और चीतल आदि सियाड़ी बीज खाकर पेट भरते रहे हैं। जंगलों में इसकी बेल खत्म होने से कई वन्य जीवों का आहार भी कम हो गया है।
बैलों को स्वस्थ रखने के लिए भी ग्रामीण देव सियाड़ी का बीज तोड़कर खिलाते हैं। कुछ ग्रामीण आकस्मिक औषधि के विकल्प में देव सियाड़ी के बीज को लॉकेट की तरह पहनते हैं और पेट दर्द होने पर भूनकर खा लेते हैं।