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कभी महाकोशल की राजधानी था यह भव्य शहर, हजारों वर्षों बाद खुदाई में मिले अवशेष

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 समय का चक्र लगातार चलता रहता है। वर्तमान पर धूल की पर्तें चढ़ती जाती हैं और वह इतिहास में दफन हो जाता है। आज से करीब 15 सौ साल पहले भारत के मध्यवर्ती हिस्से में एक बड़ा साम्राज्य हुआ करता था, जिसे महाकोशल के नाम से जाना जाता था। गुप्त काल के इतिहास में यह देश की 16 महाजनपदों में से एक था। आज महाकोशल की जगह छत्तीसगढ़ राज्य के नाम से इस क्षेत्र को जाना जाता है। इसी महाकोशल में भद्रावती के सोमवंशी पाण्डव नरेशों ने अपनी राजधानी स्थापित की थी।

इस राजधानी का नाम सिरपुर था जो उस समय एक संपन्न् और भव्य शहर हुआ करता था। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 78 किमी दूर महानदी के तट पर स्थित सिरपुर आज भी इतिहास को अपने अंदर समेटे हुए है। यहां 1954 ई. में पहली बार ऐतिहासिक उत्खनन का काम शुरू हुआ और ईंटों से बने भव्य लक्ष्मण मंदिर के रूप में पहला साक्ष्य सामने आया। विशाल लक्ष्मण मन्दिर लाल पत्थर का बना हुआ है। मन्दिर के गर्भ गृह में लक्ष्मण की मूर्ति है। यह मूर्ति एक पांच फनों वाले सर्प पर आसीन है।

सिरपुर का एक अन्य मन्दिर गंधेश्वर महादेव का है। जो महानदी के तट पर स्थित है। इसके दो स्तम्भों पर अभिलेख उत्कीर्ण हैं। कहा जाता है कि चिमनाजी भौंसले ने इस मन्दिर का जीर्णोद्वार करवाया था एवं इसकी व्यवस्था के लिए जागीर से नियत कर दी थी। यह मन्दिर वास्तव में सिरपुर के अवशेषों की सामग्री से ही बना प्रतीत होता है। सिरपुर से बौद्धकालीन अनेक मूर्तियां भी मिली हैं।

टीला पंचायतन शिव मंदिर का उत्खनन साल 2006 में इतिहासकार अरूण शर्मा के मार्गदर्शन में किया गया। कई सीढ़ियों के साथ स्थापित इस भव्य मंदिर में पुजारियों का निवास भी हुआ करता था। यहां की नर्तक मूर्तियां नैनाभिरामी हैं। इस मंदिर का निर्मांण सोमवंशी राजा महाशिवगुप्त बालार्जुन ने कराया था। इस मंदिर में 32 पाषाण स्तंभ हैं और मध्य में नंदी की महाकाय खंडित प्रतिमा स्थित है।

कहा जाता है कि 310 ई. में अलाउद्दीन खलजी के सेनापति मलिक काफूर ने वारंगल की ओर कूच करते समय सिरपुर पर भी धावा किया था, जिसका वृत्तान्त अमीर खुसरो ने लिखा है। करीब 15 सौ साल बाद भी यह मंदिर पूरी भव्यता के साथ यहां खड़ा है और सिरपुर के वैभवशाली इतिहास का आज भी गवाह बना हुआ है।