अमेरिका से जारी टैरिफ वार के बीच भारत के लिए रूस एक तरह से ढाल बनकर सामने आया है. हथियारों से लेकर सस्ते तेल तक… वह कई चीजें भारत को दिल खोलकर देने को तैयार है जिससे कि डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ हमले के असर को बेअसर किया जा सके. इस बीच एक शानदार रिपोर्ट आई है. इससे हर जरूरतमंद भारतीय के घर में खुशी आ सकती है. दरअसल, पिछले तीन साल से यूक्रेन के साथ जंग में उलझे रूस भारी लेबर संकट से जूझ रहा है. इस संकट को दूर करने के लिए रूस अब अपनी पारंपरिक श्रम आपूर्ति, यानी पूर्व सोवियत गणराज्यों से आगे बढ़कर एशियाई देशों की ओर रुख कर रहा है. इस दिशा में भारत एक प्रमुख साझेदार के रूप में उभर रहा है. रूस में भारत के राजदूत विनय कुमार ने हाल ही में रूसी समाचार एजेंसी TASS को बताया कि रूसी कंपनियां विशेष रूप से मशीनरी और इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में भारतीय कामगारों को नियुक्त करने में गहरी रुचि दिखा रही हैं. दूसरी तरफ भारत में बड़ी संख्या में युवाओं को अच्छी नौकरी की जरूरत है. लेकिन, उन्हें अच्छे अवसर नहीं मिलते हैं. ऐसे में रूस में रोजगार के नए दरवाजे खुलने से भारतीय परिवारों में खुशहाली आएगी.
यह कदम रूस की अर्थव्यवस्था को स्थिर करने और श्रम की कमी को पूरा करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है. रूस में भारतीय कामगारों की बढ़ती संख्या पिछले कुछ वर्षों में रूस में भारतीय कामगारों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) के अनुसार रूसी सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि 2021 में जहां केवल 5,480 भारतीयों को रूस में वर्क परमिट जारी किए गए थे, वहीं 2024 में यह संख्या बढ़कर 36,208 हो गई. यह आंकड़ा रूस की श्रम आवश्यकताओं और भारतीय कामगारों की बढ़ती मांग को स्पष्ट करता है. विनय कुमार ने बताया कि रूस में भारतीय कामगार मुख्य रूप से निर्माण और कपड़ा क्षेत्रों में कार्यरत हैं, लेकिन अब मशीनरी और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उच्च-कौशल वाले क्षेत्रों में भी उनकी मांग बढ़ रही है.
उन्होंने कहा कि रूस में जनशक्ति की आवश्यकता है और भारत के पास कुशल जनशक्ति उपलब्ध है. वर्तमान में रूसी नियमों और कोटा प्रणाली के तहत कंपनियां भारतीयों को नियुक्त कर रही हैं. हालांकि, भारतीय कामगारों की बढ़ती संख्या ने दूतावास और वाणिज्य दूतावासों पर भी दबाव बढ़ाया है. राजदूत ने बताया कि पासपोर्ट नवीनीकरण, बच्चों के जन्म प्रमाणपत्र, पासपोर्ट के नुकसान जैसे कांसुलर सेवाओं की मांग में वृद्धि हुई है. इस चुनौती से निपटने के लिए भारत ने येकातेरिनबर्ग में एक नया वाणिज्य दूतावास खोलने की योजना बनाई है. बीते जुलाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी रूस यात्रा के दौरान मॉस्को में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए येकातेरिनबर्ग और कज़ान में दो नए वाणिज्य दूतावास खोलने की घोषणा की थी, ताकि यात्रा और व्यापार को बढ़ावा दिया जा सके.
रूस में कामगारों की कमी का प्रमुख कारण यूक्रेन के साथ चल रहा युद्ध है, जिसने रूसी अर्थव्यवस्था और जनशक्ति को प्रभावित किया है. युद्ध के कारण रूसी सशस्त्र बलों और रक्षा उद्योगों में भारी भर्ती की गई है, जिसके चलते निजी कंपनियों में कामगारों की कमी हो गई है. इसके अलावा रूस की जनसांख्यिकीय गिरावट और प्रवास-विरोधी नीतियों ने इस संकट को और गहरा किया है. फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूसी सैन्य कार्रवाई शुरू होने के बाद से लाखों रूसी नागरिक देश छोड़कर चले गए हैं. इस कारण भी श्रम बाजार में और कमी आई. 2024 में रूसी कारखानों ने 47,000 विदेशी कामगारों को नियुक्त किया, जो सरकार द्वारा निर्धारित 40,500 के कोटे से 16 प्रतिशत अधिक है. ये कामगार मुख्य रूप से चीन, भारत, तुर्की, सर्बिया और अन्य वीजा-आवश्यकता वाले देशों से आए हैं. रूसी श्रम मंत्रालय के अनुसार 2025 के लिए भारतीय कामगारों के लिए अधिकतम 71,817 वर्क परमिट का कोटा निर्धारित किया गया है.
रूस की कई कंपनियां भारतीय कामगारों को नियुक्त करने के लिए सक्रिय कदम उठा रही हैं. उदाहरण के लिए मॉस्को स्थित डेवलपर समोल्योट ग्रुप ने मार्च में भारतीय निर्माण कामगारों को नियुक्त करने के लिए एक पायलट कार्यक्रम शुरू किया था. हालांकि, इस कार्यक्रम को भाषा और सांस्कृतिक में अंतर के कारण पूरी सफलता नहीं मिली. फिर भी रिटेल दिग्गज X5 ग्रुप और ऑनलाइन मार्केट प्लेस ओजोन जैसी कंपनियों ने हाल के वर्षों में भारतीय कामगारों को नियुक्त किया है. रूस में वेल्डर, कंक्रीट वर्कर, फिनिशर और खाद्य व कृषि कर्मचारियों जैसे व्यवसायों में विदेशी कामगारों की मांग बढ़ रही है. भर्ती एजेंसी इंट्रुड के प्रबंध निदेशक दिमित्री लापशिनोव के अनुसार ये क्षेत्र विशेष रूप से श्रम की कमी से जूझ रहे हैं.
रूस का एशियाई देशों की ओर रुख
रूस अब केवल भारत ही नहीं बल्कि म्यांमार, श्रीलंका और उत्तर कोरिया जैसे अन्य एशियाई देशों से भी कामगार लाने की योजना बना रहा है. उरल्स चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के प्रमुख आंद्रेई बेसेडिन ने हाल ही में दावा किया था कि 2025 के अंत तक रूस में 10 लाख भारतीय कामगार आ सकते हैं. हालांकि, रूसी श्रम मंत्रालय ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि यह सटीक नहीं है और विदेशी कामगारों की भर्ती कोटा प्रणाली के तहत ही होगी.
भारत-रूस संबंधों को बढ़ावा
भारतीय कामगारों की बढ़ती मांग न केवल रूस की श्रम आवश्यकताओं को पूरा कर रही है, बल्कि भारत और रूस के बीच आर्थिक और राजनयिक संबंधों को भी मजबूत कर रही है. प्रधानमंत्री मोदी की हाल की रूस यात्रा और नए वाणिज्य दूतावासों की स्थापना जैसे कदम दोनों देशों के बीच व्यापार और लोगों के आवागमन को बढ़ाने की दिशा में महत्त्वपूर्ण हैं.