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‘आयुष्मान’ योजना की आयु ‘स्‍माल’, बस्तर संभाग के 7 जिलों में एक अदद ट्रॉमा सेंटर नहीं है|

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आयुष्मान योजना लायक ढांचे के पोस्टमार्टम से पहले जमीनी हकीकत की बानगी देखिए कि बस्तर संभाग और जिले के मुख्यालय जगदलपुर के महारानी अस्पताल से लोग इतने नाउम्मीद हैं कि अब उन्हें जिम्मेदार और अस्पताल दोनों में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं दिखती. बीजापुर के सुदूर इलाके में लोग बुखार का इलाज चींटी से कटवाकर करवाना पसंद करते हैं, क्योंकि अस्पताल की दवाइयां उनके मलेरिया पर बेअसर है. दुर्ग जैसे जिले में डेंगू के चलते 15 से ज्यादा मरीजों की मौत हो गई और दो कद्दावर तत्कालीन मंत्रियों को इसमें ‘कुछ खास बड़ा’ नज़र नहीं आया.

सुपेबेड़ा में 60 से ज्यादा लोगों की मौत किडनी की बीमारी के चलते हो गई, लेकिन केंद्र-राज्य दोनों के पास अभी तक बीमारी और उपचार की कोई पुख्ता जानकारी नहीं है. ये फेहरिस्त बहुत लंबी है. पिछले 10 सालों में छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य महकमे को सिर्फ एक बार तारीफ मिली. ज्यादातर समय सूबे की बदहाल सेहत सुर्खियों में रही. यही वो ढांचागत बेबसी है कि यदि आयुष्मान योजना राज्य में पूरी तरह लागू हो भी जाती तो ऐसा जान पड़ता कि हाथी, स्कूटर की सवारी कर रहा है. लेकिन देश का चलन है कि टॉयलेट के ‘लोटा चोरों’ को T18 ट्रेन देनी पड़ रही है.
इन्हीं अव्यवस्थाओं ने नई नवेली कांग्रेस सरकार को मौका दे दिया कि वो तेलंगाना, दिल्ली, उड़ीसा, केरल, पंजाब और पश्चिम बंगाल के बाद आयुष्मान योजना की आयु स्माल कर सकती है, यानी बंद कर सकती है. इसके माने सियासी हैं, लेकिन कोई स्वीकार नहीं करेगा. कांग्रेस नेताओं का तर्क है कि हम एक ‘यूनिवर्सल हेल्थ स्कीम’ लेकर आएंगे, लेकिन नाम के अलावा कोई भी यूनिवर्सल ब्लू प्रिंट नई सरकार के पास नहीं है. पुरानी सरकार की तरह ही नई सरकार भी ज़ुबानी जमा खर्च करती नजर आती है, जबकि विपक्ष में रहते हुए सूबे की चौपट हो चुकी ‘सेहत’ उसका प्रमुख मुद्दा थी. इधर फिलहाल विपक्ष में बैठी बीजेपी एक महीने में ही नई सरकार से नतीजे मांग रही है, अपने दौर की गलतियों पर पर्दा डाल रही है.

इस योजना को लागू करने में एक बड़ा पेंच है केंद्र-राज्य सहभागिता. केंद्र सरकार इसका 60 फीसद खर्च उठाएगी और राज्य का खर्चा 40 परसेंट है. इंकार करने वाले बाकी राज्यों ने अपनी योजनाओं को बेहतर बताया, लेकिन ममता बनर्जी ने कहा कि केंद्र पहले अपना 60 फीसद हिस्सा पूरा दे. दिल्ली ने तो योजना के लागू होते ही इसे सफेद हाथी करार दे दिया था.

छत्तीसगढ़ बीजेपी के इस योजना से लगाव की एक वजह है कि योजना के एक हिस्से का शुभारंभ बीजापुर के जांगला से किया गया. 14 अप्रैल 2018 में जांगला से पहले हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर यानी स्वास्थ्य कल्याण केंद्र की शुरुआत. योजना के तहत बकायदा इस हिस्से के लिए 12 सौ करोड़ अलग से रखे गए. छत्तीसगढ़ में एक हजार वेलनेस सेंटर खोलने या पुराने को बदलने का लक्ष्य भी तय किया गया था, जो ज़मीन पर नजर नहीं आया.

छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य से जुड़े आंकड़े डराते हैं. आयुष्मान वाली सरकार ने जवाब नहीं दिया और यूनिवर्सल हेल्थ स्कीम वाली सरकार फिलहाल जिम्मेदारी नहीं लेना चाहती. इन सबके बीच डेंगू का कहर, अंखफोड़वा कांड, कोख कांड, नसबंदी कांड से उठे सवाल जस के तस हैं. जहां 30 हजार रुपए की निकासी के लिए निजी नर्सिंग होम एक परिवार की तीन पीढ़ियों की बच्चेदानी निकाल लेते हों, वहां किसी नई योजना की नहीं, अमल की जरूरत है.

पिछले पांच साल में स्वास्थ्य विभाग से जुड़े ज्यादातर कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर सड़क पर उतरे रहे, तब भी जब प्रधानमंत्री मोदीकेयर के तहत वेलनेस सेंटर लॉन्च कर रहे थे. ज्यादातर जिला अस्पताल रेफर सेंटर बने हुए हैं. प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की तो बात ही बेमानी है. घोर नक्सल प्रभावित बस्तर संभाग के 7 जिलों में एक अदद ट्रॉमा सेंटर नहीं है.

कांग्रेस के पुराने आरोपों के मुताबिक प्रदेश में 23 हजार से ज्यादा डॉक्टरों की जरूरत है. विशेषज्ञ डॉक्टरों के करीब 80 फीसद पद खाली पड़े हैं. रायपुर के भीमराव आंबेडकर अस्पताल में 480 डॉक्टर चाहिए, पदस्थ हैं करीब 203 डॉक्टर. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के मुताबिक 25 हजार से ज्यादा डॉक्टर छत्तीसगढ़ को चाहिए. डॉक्टरों की जरूरत के आंकड़े इतने डरावने हैं तो तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों का अंदाजा लगाया जा सकता है. इन सबसे निपटने के बाद, बात आती है उपकरणों की, जिस पर बात करना फिलहाल बेमानी है. अब इन सबके बीच न कहीं आयुष्मान योजना फिट होती है न ही यूनिवर्सल हेल्थ स्कीम. बाकी सरकार बदल गई है तो दिल को खुश रखने को गालिब ये खयाल अच्छा है.

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