उस दिन ठंड कुछ ज्यादा ही थी। मगर, देश के पश्चिमी इलाके गुजरात में सूरत के हरिपुरा गांव में गर्मी बढ़ गई थी। एक महानायक का प्रताप सिर चढ़कर बोल रहा था। सुबह से ही लोग उस महानायक को देखने के लिए जमा हो गए थे। यह महानायक और कोई नहीं सुभाष चंद्र बोस थे। वजह यह थी कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का हरिपुरा अधिवेशन यहां होने जा रहा था। सुभाष चंद्र बोस की अध्यक्षता में कांग्रेस का यह 51वां अधिवेशन 19 फरवरी से 21 फरवरी, 1938 के बीच चला। इस अधिवेशन के 87 साल बाद उसी गुजरात में कांग्रेस फिर से अधिवेशन कर रही है। जानते हैं क्या हुआ था उस अधिवेशन में। आज के अधिवेशन से बीते 11 साल से सत्ता से दूर हो चुकी कांग्रेस क्या फिर से अपनी खोई हुई ताकत पा लेगी
गांधीजी ने सुभाष के इस प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया। उन्होंने इस अल्टीमेटम और संघर्ष की रणनीति का समर्थन नहीं किया। वे अहिंसा और सत्याग्रह के रास्ते पर चलने के पक्ष में थे। हरिपुरा प्रस्ताव के अनुसार अंग्रेजों को छह महीने का समय दिया गया था कि वे भारत को पूर्ण स्वराज दें या फिर विद्रोह का सामना करें। दूसरी ओर गांधी इसे स्वीकार नहीं कर सके। सुभाष ने अंग्रेजों को उखाड़ फेंकने के लिए गांधी के अहिंसक और सत्याग्रह उपायों का समर्थन नहीं किया। यहीं से दोनों के वैचारिक मतभेद गहरा गए