chhatisgarh: भीषण गर्मी में बढ़ी मिट्टी के घड़े की डिमांड, डॉक्टर से जानें क्यों पीना चाहिए मटके का पानी?
गर्मी के दिनों में शरीर को झुलसा देने वाली चिलचिलाती धूप से जब धरती तपती है तो लोगों का कंठ भी सूखने लगता है. इस समय यदि कंठ को सबसे प्रिय चीज यदि कोई है तो वह सिर्फ ठंडा पानी ही है.
आधुनिकता के इस युग में भले ही लाइट से चलने वाले फ्रिज सहित अन्य मशीनों की बाजार में भरमार है, लेकिन आज भी देसी घड़े की बात ही कुछ और है.
आधुनिकता के इस युग में आज भी मिट्टी से बने देशी घड़े लोगों की पहली पसंद बनी हुए है. ये मिट्टी के देसी घड़े सेहत के साथ-साथ लोगों को ठंडे पानी की भी गारंटी देते हैं. वहीं बदलते वक्त के साथ-साथ लोगों का रूझान फिर से पारंपरिक चीजों की ओर बढ़ रहा है. इसी तरह से गर्मियों में आज कल लोग फ्रिज के मुकाबले ठंडे पानी के लिए मिट्टी के बर्तनों का अधिक उपयोग कर रहे हैं.
मिट्टी से बने ये बर्तन न केवल सेहतमंद है बल्कि किफायती भी है. इसलिए इनकी मांग भी अब धीरे-धीरे बढ़ने लगी है. आजकल बिजली से उपयोग होने वाले सामान में पानी के साथ अन्य वस्तुएं ठंडी रहती हैं, लेकिन मिट्टी से बने बर्तनों की बात ही कुछ अलग है. ऐसे इस बात को लोग भलीभांति जानते भी है, तभी सड़क के किनारे बेचे जा रहे मिट्टी के बर्तनों को देखकर इधर से गुजरने वाले राहगीर खुद इसकी ओर खिंचे चले आ रहे हैं.
गर्मियों में जब घड़ों की डिमांड बढ़ती है तो कुम्हारों का व्यवसाय भी खूब फलने-फूलने लगता है. इस सीजन में लोग बाजारों से लगातार मटके खरीदते हैं. इस समय मटकों की कीमत 100 रुपये से लेकर 500 रुपये तक पहुंची हुई है. मटकों की बढ़ती डिमांड को देखकर अब ऑनलाइन सेल्स कंपनियां भी मचके बेच रहे हैं. वो कुम्हारों को ऑर्डर देकर मटके बनवाते हैं, फिर उच्च दामों में ऑनलाइन बेचते हैं.
कई बीमारियों के लिए मददगार है मटके का पानी
मटके का पानी ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करता है, शरीर के बैड कोलेस्ट्रॉल को कम करता है और ब्लड सकुर्लेशन नियंत्रित रखने में मदद करता है. मई-जून में गर्मी का सितम जब नॉनस्टॉप होता है तो लोगों को देसी मटके की याद अचानक से आनी शुरू हो जाती है. आधुनिक युग में शायद ही कोई घर ऐसा हो, जिनके यहां फ्रिज न हो, लेकिन बावजूद इसके देसी मटको का क्रेज अपने जगह बरकरार है.
एक प्रचलित कहावत है कि सोने की खोज में हीरे को भूल गए. कुछ ऐसा ही हुआ, जब जमाने ने बदलाव के लिए करवट ली, तो जनमानस ने देसी परंपराओं के साथ प्राचीन धरोहर कही जाने वाली वस्तुओं से भी तौबा कर लिया, पर वक्त का पहिया फिर बदला है. इसलिए लोग पुराने जमाने की ओर फिर से मुड़ने लगे हैं. फ्रिज का पानी आनंद नहीं दे रहा, इसलिए लोग मटको को पसंद कर रहे हैं. मटकों का पानी आज भी फ्रिज के मुकाबले ठंडा और स्वादिष्ट लगता है.
शरीर के लिए लाभदायक होता है घड़े का पानी
बता दें शरीर के लिए ताजा पानी लाभदायक होता है. इसलिए देसी घड़े का पानी न सिर्फ स्वास्थ्य के लिए बल्कि हजामा दुरूस्त के लिए भी गुणकारी होता है. चिकित्सीय सर्वेक्षण बताते हैं कि सर्दियों के मुकाबले गर्मियों में मटके का ठंडा पानी शरीर के लिए बहुत उपयोगी होता है, क्योंकि मटके की दीवारें मिट्टी से सरंध्री होती हैं, जिससे पानी धीरे-धीरे रिसता है और बर्तन की सतह से वाष्पित होता है. इसका भीतरी वातावरण वाष्पीकरण ऊष्मा ठंड़क का उत्सर्जन करता है, जिससे अंदर जमा पानी चंद मिनटों में ठंडा हो जाता है.
घड़े की मिट्टी पानी को इन्सुलेटर करती है जिसके इस्तेमाल से शरीर हाइड्रेट रहता है और पाचन प्रक्रिया हमेशा दुरुस्त रहती है. सूरजपुर जिले में इस बार नवतपा में पूरे नौ दिनों तक पारा 40 से 45 डिग्री के बीच बनी हुई थी, जिससे पिछले कई वर्षों के गर्मी का रिकॉर्ड भी टूट गया. पहाड़ी क्षेत्रों में तो गर्मी से लोगों का हाल बेहाल था. शहरी और ग्रामीण क्षेत्र क लोग भी हलाकान थे. ऐसे में पेट की ठंडक मटकों पर निर्भर हो गई है. ऐसे में हर चौथा व्यक्ति मटका खरीद रहा है.
डॉक्टर भी मटके का पानी पीने की सलाह देते हैं
डॉक्टरों की मानें तो आरओ पानी में बैक्टीरियल इन्फेक्शन और फंगल इन्फेक्शन की संभावना सबसे ज्यादा रहती हैं. इसके अलावा पेट से संबंधित अधिकांश बीमारी भी दूषित पानी के इस्तेमाल से पनपती हैं. आरओ पानी को पीने की कोई भी सलाह नहीं देता, विशेषकर बच्चों के लिए ये पानी सबसे घातक होता है.
आरओ पानी का मतलब है टोटल डिसोल्वड सालिबिलिटी, मतलब उस पानी में साधारण पानी की अपेक्षाकृत कम खनिज लवणों का होना, जिसमें हानिकारक तत्व बेहताशा घुले होते हैं. पानी को दो-तीन मर्तबा छानने या फिल्टर करने का मतलब होता है कि पानी की आत्मा को अंदर खींचकर शरीर से अलग कर देना. यही कारण है कि डॉक्टर मरीजों को मटके का ही पानी पीने की सलाह देते हैं.