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छत्तीसगढ़ में आदिवासी वोटों की नैय्या पर चार और हुए दल सवार

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आदिवासी वोटों को लेकर भाजपा और कांग्रेस में हमेशा खींचतान मची रहती है। इसका कारण यह है कि आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ में किसी भी राजनीतिक दल को सत्ता में आने के लिए आदिवासी वोटों को साधना बहुत जरूरी है। 90 में से 29 सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है।

प्रदेश में आदिवासियों की आबादी लगभग 72 लाख है। 29 सीट के अलावा कई और सीटों पर भी आदिवासियों का प्रभाव है। दोनों प्रमुख दलों के आदिवासी वोटों के समीकरण को गड़बड़ाने के लिए चार और पार्टियां तैयार खड़ी हैं। मतलब, अब आदिवासी वोटों की नैय्या पर छह दल सवार हो चुके हैं। जाहिर सी बात है, ऐसी स्थिति में भाजपा-कांग्रेस के लिए आदिवासी सीटों पर चुनौती कड़ी हो गई है।

18 पर कांग्रेस व 11 पर भाजपा का कब्जा

कांग्रेस का वोट बैंक अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति ही रहा है, लेकिन भाजपा इसमें सेंध लगाने में सफल रही है। अभी अनुसूचित जनजाति आरक्षित 18 सीटों पर कांग्रेस और 11 में भाजपा का कब्जा है। अब अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति वोट का विभाजन हो गया है। अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित सीट ज्यादा है, इसलिए इन सीटों पर मुकाबला कड़ा होता है।

शाह से लेकर मोदी तक का फोकस

भाजपा और कांगेस का आदिवासी सीटों पर विशेष फोकस है। भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह तक आदिवासी इलाकों में सभाएं कर चुके हैं। संगठन के राष्ट्रीय सहसंगठन मंत्री सौदान सिंह ने खुद बस्तर और सरगुजा की आदिवासी सीटों का दौरा कर रणनीति बनाई है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने लोक सुराज यात्रा से लेकर विकास यात्रा तक की शुरुआत आदिवासी इलाकों से की।

हर पार्टी कर रही रिझाने की कोशिश

इधर, कांग्रेस भी अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष की एक सभा सरगुजा संभाग के सीतापुर में करा चुकी है। कोटा में आदिवासी सम्मेलन कराया था। अभी आदिवासी कांग्रेस प्रकोष्ठ ने जंगल सत्याग्रह किया था। अब विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोट का बंटवारा केवल इन्हीं दो दलों के बीच नहीं होगा। वोट काटने के लिए गोंडवाना गणतंत्र पार्टी तो पहले से है, इसके अलावा पहली बार चुनावी मैदान में उतर रही जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ और सर्व आदिवासी समाज की तरफ से घोषित ट्राइबल पार्टी भी ताल ठोंकी है। आम आदमी पार्टी ने युवा आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा करके दूसरे दलों के लिए मुश्किलें और बढ़ा दी है।

कांग्रेस और गोंगपा ने नहीं मिलाया हाथ

आदिवासी वोट बढ़ाने के लिए कांग्रेस ने एक बार कोशिश की थी कि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ समझौता हो जाए। सीटों को लेकर बात नहीं बनी तो गोंगपा के सुप्रीमो हीरासिंह मरकाम ने लखनऊ जाकर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात कर ली, लेकिन अभी तक दोनों के बीच गठबंधन फाइनल नहीं हुआ है। गोंगपा ने मध्यप्रदेश में अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। छत्तीसगढ़ में भी गोंगपा का अब तक किसी के साथ गठबंधन का आसार नहीं दिख रहा है। गोंगपा का बिलासपुर और सरगुजा संभाग की कई सीटों में ठीकठाक प्रभाव है।

जोगी भी नहीं छोड़ रहे कोई कोर-कसर

जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के सुप्रीमो अजीत जोगी भी आदिवासी वोटों को साधने की कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। उनका आदिवासी क्षेत्रों में लगातार दौरा होता रहा है। उन्होंने पहले ही यह शिगूफा छोड़ रखा है कि अगर, उनकी सरकार बनती है, तो वह बस्तर से चलेगी। मतलब, जोगी सरकार का मुख्यालय बस्तर होगा। जोगी की सरकार में डिप्टी सीएम भी बस्तर से होगा।

सर्व आदिवासी समाज ने बनाई पार्टी

आदिवासियों का सबसे बड़ा संगठन सर्व आदिवासी समाज है। इसके प्रमुख पहले यह कहते रहे कि उनका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। हां-ना करते हुए आखिरकार ट्राइबल पार्टी बनाने की घोषणा कर डाली। ट्राइबल पार्टी सभी 29 एसटी सीटों से उम्मीदवार उतारेगी। पार्टी का पंजीयन नहीं है, इसलिए उसके प्रत्याशियों को निर्दलीय चुनाव लड़ना होगा।

आदिवासी विकास परिषद में दो फाड़

आदिवासी विकास परिषद गैर राजनीतिक संगठन है। यह संगठन पहले कांग्रेस के समर्थन की घोषणा करता रहा है, लेकिन अब इस संगठन से भाजपा समर्थक आदिवासी नेता भी जुड़ चुके हैं। इस कारण अभी इस संगठन का दो फाड़ हो गया है। ऐसी स्थिति में आदिवासी विकास परिषद का वोट बंटने की पूरी संभावना है, जिसका नुकसान कांग्रेस को हो सकता है।

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