तेजी से बढ़ती गर्मी ना केवल दुनिया के महासागरों का जलस्तर बढ़ा रही है, बल्कि ऊंचाइयों पर स्थित ग्लेशयर भी पतले हो रहे है. इतना ही नहीं बर्फीले इलाकों की झीलों का आकार भी बढ़ रहा है जो उत्साह बढ़ाने वाला संकेत नहीं हैं.
नए अध्ययन में हिमालय के इन्हीं अवलोकनों के साथ प्रतिमानों में सिम्यूलेशन कर पाया है कि जलवायु परिवर्तन के कारम साल 2100 को दुनिया के ग्लेशियर अपना 40 फीसदी तक का भार गंवा देंगे. इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया कि कितने अधिक की तापमान वृद्धि का कितना और कैसा असर देखने को मिलेगा. यह प्रभाव कुछ खास जगहों पर नहीं पर वहां पर भी दिखेगा जहां इंसानों की पहुंच नहीं है.
पांच साल तक किया अवलोकन
एक अभूतपूर्व अध्ययन में कारनेगी मेनोन यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ डेविड राउंस की अगुआई में किए गए शोध में पूरी दुनिया में ग्लेशियरों के पिघलने का पूर्वानुमान लगाया गया है. साइंस में प्रकाशित जर्नल में इस शोध में राउंस और उनकी टीम ने 2013 से लेकर 2017 तक हिमालय के इम्जा-लोहत्से शार ग्लेशियर का अध्ययन किया.
आंखे खोलने वाले नजारे
इस अध्ययन में राउंस की टीम ने सबसे प्रमुख तौर पर पाया कि जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर तेजी से कम हो रहे हैं और झीलों का विस्तार होने लगा है. उन्होंने बताया कि एक ही जगह पर बार बार जाना और झीलों के विस्तार के साथ पतले होते ग्लेशियरों को देखना आंखे खोल देने वाला नजारा होता है.
क्या होगा अगर तापमान बढ़ता रहा
अध्ययन में विशिष्ट तकनीकों का प्रयोग कर वैश्विक स्तर पर बढ़ते तापमान के प्रभाव का अनुमान लगाया गया कि यदि दुनिया के ग्लेशियर पूर्व औद्योगिक काल की तुलना में औसत 1.5 से 4 डिग्री सेल्सियस तक गर्म होते रहे तो ग्लेशियरों का क्या होगा. इसमें उन्होंने ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की बर्फ की चादरों को शामिल नहीं किया.
कितने तापमान बढ़ने पर कैसा असर?
पड़ताल के नतीजे सुझाते हैं कि केवल 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने से दुनिया के आधे ग्लेशियर गायब हो जाएंगे जिससे 2100 तक महासागरों का जलस्तर 9 सेंटीमीटर तक बढ़ जाएगा. वहीं यदि तापमान 2.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा तो मध्य यूरोप, पश्चिमी कनाडा और अलास्का सहित अमेरिका के करीब सभी ग्लेशियर पिघल जाएंगे और दुनिया भर के 80 फीसदी ग्लेशियर गायब हो जाएंगे यदि गर्मी 4 डिग्री सेल्सियस तक की हो गई. ऐसे में महासागरों का जलस्तर 15 सेंटीमीटर तक बढ़ जाएगा.
अटल यह नुकसान
राउंस ने चेतावनी दी है कि चाहे तापमान कितना भी बढ़ता रहा है, ग्लेशियरों को भारी मात्रा में नुकसान होने वाला है और यह अटल है. यह अपने तरह का पहला अध्ययन है जिसमें सैटेलाइट की तस्वीरों के आधार पर दुनिया के करीब दो लाख 15 हराज ग्लेशियरों के भार में बदलाव के आंकड़ जमा किए गए हैं. इस प्रतिमान में ग्लेशियर के अवशेषों की परत को भी शामिल किया गया है जो ग्लेशियरों के पिघलने पर प्रभाव डालती हैं.
सुदूर इलाके के ग्लेशियर भी नहीं अछूते
अवशेषों की पतली परत बर्फ के पिघलने की गति बढ़ा देती है और वहीं मोटी परत इसके कम करती है. सुदूर इलाकों में ग्लेशियर, जो इंसानी गतिविधियों से अप्रभावित हैं, खास तौर से जलवायु परिवर्तन के सही संकेत दे सकते हैं. उनका तेजी से पिघलना साफ पानी की उपलब्धता, भूभागों, पर्यटन, पारिस्थितिकी तंत्र आदि को प्रभावित करता है.
शोधकर्ताओं का कहना है कि महासागरों का जलस्तर बढ़ना कुछही जगहों की समस्या नहीं है. यह पृथ्वी पर हर जगह हो रहा है. ऐसी संभावनाओं के बाद भी राउंस का कहना है कि वे किसी तरह नकारात्मक परिदृश्य नहीं बना रहे हैं बल्कि इस बात पर जोर दे रहे हैं कि हम कैसे इसे बदल सकते हैं. और हम ऐसा कर सकते हैं.