उत्तर प्रदेश की घोसी विधानसभा उपचुनाव के लिए मतगणना जारी है. बीजेपी प्रत्याशी दारा सिंह चौहान और सपा उम्मीदवार सुधाकर सिंह की किस्मत दांव पर लगी हुई है. उपचुनाव को 2024 के लोकसभा का लिटमस टेस्ट माना जा रहा है, क्योंकि एनडीए बनाम विपक्षी गठबंधन INDIA के बीच मुकाबला है.
ऐसे में घोसी में कमल खिलता हो तो एनडीए विपक्षी गठबंधन INDIA पर हमलावर हो जाएगा, लेकिन हारती है तो बीजेपी से ज्यादा ओपी राजभर पर सवाल खड़े होंगे.
दौड़ेगी साइकिल या खिलेगा कमल?
घोसी के पिछले कुछ नतीजों पर नजर डालें तो पता चलता है कि लेफ्ट के बाद बसपा का मजबूत गढ़ रहा है. 2012 में सपा पहली बार यह सीट जीतने में सफल रही, लेकिन पांच साल बाद उसे गवां दिया. 2017 में बीजेपी को जीत मिली, जिसे उसने 2019 उपचुनाव में भी बरकरार रखा. 2022 में बीजेपी से सपा में आए दारा सिंह चौहान विधायक बने, लेकिन एक साल बाद ही पार्टी और विधायकी से इस्तीफा देकर घर वापसी कर गए. इसी के चलते उपचुनाव हुए हैं, लेकिन बीजेपी 2019 की तरह 2023 में भी कमल खिलाने में कामयाब रहती है या फिर 2022 की तरह सपा की साइकिल रफ्तार पकडे़गी, यह देखने वाली बात होगी.
घोसी विधानसभा उपचुनाव में दारा सिंह और सुधाकर सिंह के साथ सपा और बीजेपी के दिग्गज नेताओं की भी साख दांव पर लगी है. डिप्टी सीएम बृजेश पाठक और सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर के लिए प्रतिष्ठा से जुड़ी हुई है, जिसके चलते ही दोनों नेताओं ने घोसी में डेरा जमा रखा था. वहीं, सपा महासचिव शिवपाल यादव और अंसारी बंधुओं के लिए खुद को साबित करना होगा, क्योंकि यह सीट मुख्तार अंसारी के प्रभाव वाली है तो शिवपाल ने शुरू से ही चुनाव प्रचार की कमान अपने हाथों में ले रखी थी. ऐसे में घोसी के नतीजे दारा और सुधाकर ही नहीं बल्कि बृजेश पाठक से लेकर शिवपाल, अंसारी बंधु और राजभर के सियासी भविष्य का भी फैसला करेगा.
बृजेश पाठक की अग्निपरीक्षा
दारा सिंह चौहान को सपा से बीजेपी में लाने का श्रेय डिप्टी सीएम बृजेश पाठक को जाता है, क्योंकि दोनों ही नेता एक साथ बसपा में रहे हैं. बृजेश पाठक के लिए दारा सिंह को चुनाव जिताना अग्निपरीक्षा से कम नहीं है. यही वजह है कि बृजेश पाठक ने दारा सिंह चौहान के नामांकन से लेकर चुनाव प्रचार तक घोसी में डेरा जमा रखा था. दारा सिंह के लिए पाठक ने जमकर मशक्कत की है.
राजभर की साख दांव पर
सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर ने सपा गठबंधन से अलग होकर बीजेपी के साथ हाथ मिलाया है. इसके बाद पहला उपचुनाव घोसी में हो रहा है, जहां पर 52 हजार राजभर समुदाय के वोट हैं. इसीलिए ओम प्रकाश राजभर ने चुनाव में घोसी सीट पर डेरा जमा रखा था, लेकिन अगर वो अपने वोट बीजेपी में ट्रांसफर नहीं करा पाते हैं तो तो उनका सियासी कद घटेगा. घोसी सीट राजभर के प्रभाव वाली मानी जाती है.
शिवपाल की प्रतिष्ठा दांव पर लगी!
घोसी विधानसभा सीट पर सपा के सुधाकर सिंह के लिए सबसे ज्यादा मशकक्त शिवपाल यादव ने की है. शिवपाल ने गांव-गांव घूमकर सुधाकर को जिताने के लिए दिन रात एक कर दिया. चुनाव प्रचार थमने के बाद उन्होंने पड़ोसी जिले आजमगढ़ में डेरा जमा लिया था. ऐसे में समाजवादी पार्टी की जीत से शिवपाल यादव का पार्टी में कद फिर से बढ़ेगा, जिन्होंने प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी थी.
अंसारी बंधुओं की साख का सवाल
घोसी विधानसभा सीट पर मुख्तार अंसारी परिवार की साख भी दांव पर लगी हुई है. मुख्तार अंसारी भले ही जेल में हो, लेकिन घोसी में उनका सियासी प्रभाव माना जाता है. मुख्तार अंसारी और उनके बेटे भले ही जेल में हो, पर उनके भतीजे मन्नु अंसारी ने लगातार घोसी में प्रचार की कमान संभाल रखी थी. ऐसे में मुस्लिम वोटों को एकमुश्त सपा प्रत्याशी के पक्ष में कराने का जिम्मा अंसारी बंधुओं के ऊपर है.