Over 99% population breathes toxic air ; आज से करीब 9 महीने पहले 26 जुलाई 2022 को संयुक्त राष्ट्र ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए साफ और स्वस्थ पर्यावरण को मानवाधिकार घोषित (UN declares healthy environment a human right) किया था.
यानी साफ और शुद्ध हवा में सांस लेना दुनिया के हर इंसान का मानवाधिकार है. इस प्रस्ताव का भारत ने भी भरपूर समर्थन किया था और 14 दिसंबर 2022 को भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) ने भी नेशनल एनर्जी कंजर्वेशन डे (National Energy Conservation Day) के मौके पर कहा था कि साफ हवा में सांस लेना एक बुनियादी मानवाधिकार है.
गैस चेंबर बनी दुनिया?
आज भारत समेत पूरी दुनिया की स्थिति यह है कि 99.999% आबादी को पूरे साल साफ हवा नसीब नहीं होती है. और उसे जहरीली हवा में सांस लेना होता है. जी हां 99.999% फीसदी आबादी यानी 793 करोड़ लोग आज जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं. अभी हाल ही में छपी Lancet की स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के सिर्फ और सिर्फ 0.001 फीसदी भाग्यशाली लोग ही ऐसे हैं जो पूरे साल साफ हवा में सांस ले पाते हैं. जबकि विश्व की 99.999% आबादी खराब/जहरीली हवा (Toxic Air) में सांस ले रही है.
रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा
इस स्टडी में वैज्ञानिकों ने बताया है कि उन्होंने 1 जनवरी 2000 से 31 दिसम्बर 2019 यानी 20 साल तक विश्व के 65 देशों में मौजूद 5 हज़ार 446 Station के प्रतिदिन के PM 2.5 Air Quality Level का विश्लेषण किया. जिसके बाद वैज्ञानिकों ने 65 देशों की वैश्विक Air Quality Level को जब विश्व स्वास्थ्य संगठन के सामान्य Air Quality लेवल के पैमानों के साथ तुलना की तो सामने आया कि विश्व की मात्र 0.001% आबादी ही ऐसी है जो साल भर साफ हवा में सांस लेती है.
WHO का पैमाना
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का PM2.5 AQI के सामान्य स्तर का पैमाना कुछ इस तरह है कि किसी जगह पर एक वर्ष का औसतन PM 2.5 AQI 5 µg/m3 (5 म्यु-ग्राम per Metre Cube) से ज्यादा नहीं होना चाहिए, वही WHO के मुताबिक एक दिन का औसतन PM 2.5 AQI लेवल 15 µg/m3 (15 म्यु-ग्राम per Metre Cube) से ज्यादा नहीं होना चाहिए.
अब आप मे से जो लोग रोजाना PM2.5 AQI के 100-200 लेवल के साथ रहते होंगे, उनके मन मे सवाल होगा कि आपको तो अभी तक यही लगता था कि AQI अगर 100 से कम है तो अच्छा है, तो उदाहरण के लिए अगर मैं आपको समझाऊं तो अगर आपके आसपास कूड़ा कचरा पड़ा हुआ तो आपको खराब शायद तभी लगेगा जब उसमे से बदबू आने लगी होगी, थोड़े बहुत कूड़े पर तो आप ध्यान भी नहीं देते होंगे लेकिन यह कूड़ा कम हो ज्यादा आपके शरीर के लिए खतरनाक तो है ही. ठीक इसी तरह AQI अगर 100 या उससे कम है तो वो 200-300-400 या 500 से तो आपको कम खतरनाक लगेगा क्योंकि तब आपको शायद महसूस नहीं होगा लेकिन भीतर ही भीतर यह आपके शरीर को तो भीषण नुकसान पहुंचा ही रहा है.
हर साल करीब एक करोड़ लोगों की मौत!
ठीक इसी तरह ये PM2.5 है जो इतना सूक्ष्म है कि दिखाई तो नहीं देता लेकिन इसमें मौजूद जहरीली गैस आसानी से शरीर मे आंख, नाक और मुंह के रास्ते घुस जाती हैं और हार्ट अटैक, स्ट्रोक, अस्थमा, फेफड़ों का कैंसर जैसे कई जानलेवा रोग दे देती है. Lancet में छपी इस स्टडी में यह भी बताया गया है कि जहरीली हवा में सांस लेने की वजह से हर वर्ष 66 लाख 70 हज़ार से ज्यादा लोगों की असमय मौत (PreMauture Death) हो जाती है. यानी इस रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ वो लोग खुशनसीब हैं, जो हमेशा प्रकति के नजदीक रहते हैं, यानी हमेशा शुद्ध और ताजी हवा में सांस लेते हैं. ऐसे लोगों पर असमय मौत का खतरा लगभग न के बराबर होता है.
जहरीली हवा में सांस लेने की वजह से मरने वाला हर 4 में से 1 व्यक्ति भारतीय
भारत में हर साल साढ़े 16 लाख लोगों की जान जहरीली हवा में सांस लेने की वजह से चली जाती है. विश्व में जहरीली हवा में सांस लेने की वजह से मरने वाला हर 4 में से 1 व्यक्ति भारतीय है. भारत मे तो जहरीली हवा का आलम ये है कि विश्व के टॉप 10 सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में भारत के 6 शहर शामिल हैं. आज समय आ गया है कि जैसे संयुक्त राष्ट्र ने साफ हवा में सांस लेने को मानवाधिकार घोषित किया था, वैसे ही भारत अब साफ हवा में सांस लेने को मानवाधिकार घोषित करे और तय करे कि भारतीय लोग कितने सालों में साफ हवा में सांस ले पाएंगे.