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लद्दाख में पूर्ण राज्य की मांग मुखर, लोगों ने किया काम का बहिष्कार

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लेह के बौद्ध प्रभाव वाले क्षेत्र और मुस्लिम बाहुल्य कारगिल (Kargil) में पहली बार बात अब आंदोलन की ओर बढ़ती दिख रही है. लद्दाख (Laddakh) को पूर्ण राज्य बनाने की और यहां के निवासियों की जमीन और नौकरी की सुरक्षा गारंटी की मांग के चलते लोगों ने काम का बहिष्कार किया है. तमाम तरह की दुकानें बंद कर दी गईं और सड़कों पर सन्नाटा पसर गया है. यहां के रहवासियों ने छठी अनुसूची की तर्ज पर संवैधानिक सुरक्षा के अलावा, दो लोकसभा सीट पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया में मजबूती के लिए लोगों के प्रतिनिधित्व को मजबूती देने के साथ-साथ लद्दाख क्षेत्र में रोजगार प्रक्रिया के लिए जल्दी ही विज्ञापन निकालने के लिए दबाव डाला है.

बंद का आह्वान कारगिल लोकतांत्रिक गठबंधन और लेह अपेक्स बॉडी ने मिलकर किया था. यह दोनों समूह इन जुड़वां जिलों से संबंध रखते हैं. केंद्र के जम्मू और कश्मीर (jammu kashmir) की विशेष स्थिति (special status) को रद्द करके, जम्मू और कश्मीर, व लद्दाख को दो अलग केंद्र शासित प्रदेश बनने के दो साल गुजर जाने के बाद भी लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की लड़ाई लड़ रहा है. स्‍थानीय लोगों ने बताया कि सड़कों पर नागरिकों की आवाजाही भी करीब-करीब बंद जैसी है. व्‍यापारियों ने भी बंद को समर्थन देते हुए अपनी दुकानें बंद रखी हुई हैं.

बगैर किसी विधायिका वाला केंद्र शासित प्रदेश है लद्दाख
5 अगस्त, 2019 को जब जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा रद्द करने का फैसला लिया गया, उसके पहले लद्दाख के 2.5 लाख निवासियों का विकास दो पहाड़ी विकास परिषदों के हाथ में था, इन परिषदों का मुख्यालय कारगिल और लद्दाख में था. इन्हें यहां पर विकास कार्य करने से जुड़ी शक्तियां मिली हुई थी. हालांकि राजनीतिक अधिकार और कानून व्यवस्था जम्मू-कश्मीर विधानसभा और संसद के अंतर्गत आते थे. उस दौरान लद्दाख क्षेत्र में जम्मू-कश्मीर विधानसभा की चार विधानसभा सीट और एक लोकसभा सीट थी. लेकिन जैसे ही जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा रद्द किया गया लद्दाख बगैर किसी विधायिका वाला केंद्र शासित प्रदेश बन गया.
370 खत्म होने पर लेह में था उत्साह का माहौल
दो साल पहले जब केंद्र ने अनुच्छेद 370 खत्म करने का फैसला लिया तो इसे लेकर लेह और कारगिल से अलग अलग प्रतिक्रिया आई थीं, जहां लेह में इसे लेकर उत्साह नज़र आया वहीं कारगिल ने इस फैसले को सिरे से नकार दिया था. अब दो साल गुजर जाने के बाद दोनों एक ही नाव पर सवार हैं. इसके साथ ही पिछले कुछ महीनों से केडीए और लैब के प्रतिनिधि जो इस क्षेत्र में राजनीतिक और धार्मिक प्रतिनिधित्व रखती हैं, उन्होंने देश के उत्तरी शीर्ष पर मौजूद इस क्षेत्र के लिए पूर्ण राज्य की मांग करना शुरू कर दिया है, हालांकि इस क्षेत्र के भाजपा प्रतिनिधियों ने खुद को इस मांग से दूर कर रखा है.