मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने ऐलान किया कि उनकी सरकार 1978 में धर्म परिवर्तन को रोकने के मकसद से बनाए गए अरुणाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता कानून को खत्म करेगी। मुख्यमंत्री ने ये बात राज्य के सम्मानित ईसाई मिशनरी प्रेम भाई की 10वीं पुण्यतिथि के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में कही थी।
वहीं इस एलान की राज्य भर में तीखी प्रतिक्रिया हुई। भाजपा के वैचारिक जनक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मुख्यमंत्री से इस एलान पर अमल नहीं करने के लिए कहा। आरएसएस के एक वरिष्ठ प्रचारक ने अपना नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर कहा कि हो सकता है कि खांडू अगले चुनाव में ईसाई वोट हासिल करने की उम्मीद कर रहे हों, पर इस कानून को रद्द करना हिंदुओं की बजाए राज्य के मूल आदिवासियों के लिए कहीं ज्यादा बड़ा खतरा होगा। यह कानून मुख्य रूप से राज्य के मूल निवासी मान्यताओं और धर्म मानने वाले लोगों के ईसाइयत में अंधाधुंध धर्मांतरण को रोकने के लिए लाया गया था।
संघ के प्रचारक अपनी दलील के समर्थन में जनगणना के आंकड़े पेश करते हैं। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, ईसाई राज्य का सबसे बड़ा धार्मिक समूह है। राज्य की 13 लाख की आबादी में ईसाइयों की तादाद 30.26 फीसदी है। वहीं दस साल पहले (2001 की जनगणना में) वे महज 18.7 फीसदी थे और हिंदुओं (34.6 फीसदी) तथा ‘अन्य’-जिनमें ज्यादातर मूल निवासी डोनी-पोलो (30.7 फीसदी) हैं-से पीछे थे। 2011 की जनगणना तक हिंदू घटकर 29.04 फीसदी और ‘अन्य’ घटकर 26.2 फीसदी रह गए। इसे और अच्छी तरह समझने के लिए यह जानना दिलचस्प होगा कि 1981 में राज्य के 51.6 फीसदी बाशिंदे डोनी-पोलो और अन्य स्थानीय धर्मों के अनुयायी थे।
हालांकि डोनी-पोलो की तादाद में गिरावट चौंकाने वाली है, पर कई जानकारों का कहना है कि महंगे रीति-रिवाजों की वजह से इसके मानने वालों ने यह धर्म छोड़ दिया, मगर आरएसएस के लोग इसे और आगे ले जाते हैं। उनके मुताबिक, 1951 में राज्य में एक भी ईसाई नहीं था। खांडू जिन प्रेम भाई की पुण्यतिथि के कार्यक्रम में शरीक हुए, उन्होंने 25 साल राज्य में बिताए थे और इस कानून के तहत उन्हें कई बार गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था। ओडिशा (1967) और मध्य प्रदेश (1968) के बाद अरुणाचल प्रदेश तीसरा राज्य था, जिसने धर्मांतरण विरोधी कानून बनाया और लागू किया था। उसके बाद उत्तराखंड (2018), छत्तीसगढ़ (2000), गुजरात (2003), हिमाचल प्रदेश (2007) और राजस्थान (2008) ने भी धर्मांतरण विरोधी कानून बनाए और जबरन या प्रलोभन से धर्म बदलने पर कानूनी रोक लगा दी।
ईसाइयों ने खांडू के एलान का स्वागत किया है। अरुणाचल क्रिश्चियन फोरम के नेता टोको टेकी को लगता है कि खांडू को इस कानून और इसके प्रशासनिक दुरुपयोग की निरर्थकता का एहसास हो गया है। वे कहते हैं, जब हिंदू मंदिर बनाते हैं तब उन्हें कोई इजाजत लेने की जरूरत नहीं होती, पर जब हम चर्च बनाना चाहते हैं, तो अफसर इस बेकार के कानून की बदौलत कई किस्म की रुकावटें पैदा करते हैं। हालांकि मूलनिवासी धर्म और मान्यताओं के कुछ प्रमुख नुमांइदों ने मुख्यमंत्री के ऐलान की आलोचना की है। उनका कहना है कि पारंपरिक आस्था पद्धतियों और स्थानीय संस्कृतियों की हिफाजत करना जरूरी है।