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अनसर काल में भगवान जगन्नाथ का दर्शन क्यों होता है वर्जित ?

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जगदलपुर, बस्तर गोंचा पर्व का महात्म्य बहुआयामी है, जिसमे पौराणिक मान्यताओं के अलावा आम जनमानस के लिए स्वस्थ,सफल एवं सुखी जीवन के लिए आध्यात्मिक-वैज्ञानिक संदेश एवं जनकल्याणकरी प्रभाव भगवान जगन्नाथ के गोंचा पर्व को विश्व मे समस्त पर्वों, त्योहारों में सबसे अधिक मान्यता के साथ विशिष्ट पर्व के रूप में सबसे अग्रणीय स्थान पर युगों-युगों से स्थापित है। आज हम भगवान जगन्नाथ के अनसर काल, औषधियुक्त भोग, औषधियुक्त प्रसाद एवं अनसर काल मे भगवान के दर्शन वर्जित होने के संबंध के मायने को समझने का प्रयास करेंगे। 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष विवेक पांडे ने सारगर्भित एवं बहुआयामी जानकारी देते हुए बताया कि बस्तर गोंचा पर्व 28 जुलाई से चंदन जात्रा पूजा विधान के साथ प्रारम्भ हो चुका है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चंदन जात्रा पूजा विधान के पश्चात भगवान जगन्नाथ का 15 दिवसीय अनसर काल की अवधि होती है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ अस्वस्थ होते हैं तथा भगवान के अस्वस्थ्ता के हालात में दर्शन वर्जित होते हैं। भगवान जगन्नाथ के स्वास्थ्य लाभ के लिए औषधियुक्त भोग का अर्पण कर भगवान जगन्नाथ की सेवा अनसर काल में 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के सेवादारों एवं पंडितों के द्वारा किया जा रहा है। औषधियुक्त भोग के अर्पण के पश्चात इसे श्रधालुओं में प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।

विशेष औषधियुक्त प्रसाद का पूण्य लाभ श्रद्धालु अनसर काल के दौरान जगन्नाथ मंदिर में पहुचकर प्राप्त कर रहे हैं। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि भगवान जगन्नाथ अपने श्रधालुओं के वर्ष भर स्वस्थता के आशीष हेतु स्वयं अस्वस्थ होकर सभी के स्वास्थ्य के लिए औषधियुक्त भोग ग्रहण कर औषधियुक्त प्रसाद उपलब्ध करवाते हैं। जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु स्वरूप जगन्नाथ स्वामी विश्व के समस्त श्रद्धालुओं के स्वस्थता के लिए आयुर्वेद का औषधियुक्त प्रसाद वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मौसम के परिवर्तन के साथ स्वास्थ्य के लिए प्रसाद के बहाने लाभदायी सिद्ध होता है अर्थात आस्था के प्रसादरूपी औषधि की उपलब्धता हमारी प्राचीन आयुर्वेद की व्यवस्था के आधार को प्रासांगिक बना देता है। ऐसा महात्म्य है, औसाधियुक्त भोग एवं औषधियुक्त प्रसाद का जिसमे आध्यात्मिक-वैज्ञानिक आयाम इसमें समाहित है।

भगवान जगन्नाथ के अनसर काल मे दर्शन वर्जित होने के संबंध में जानने के लिए अनसर का साब्दिक अर्थ एवं इसका भावार्थ को समझना होगा। अनसर का साब्दिक अर्थ अनवसर होता है। अनवसर का भावार्थ उचित अवसर का नही होना कहलाता है। अर्थात भगवान जगन्नाथ के 15 दिवसीय अनसर काल मे भगवान जगन्नाथ भक्तो के स्वास्थ्य के लिए स्वयं बीमार पड़ते है, बीमार होने पर भगवान जगन्नाथ अस्त-व्यस्त अवस्था मे होते ऐसी अवस्था मे जगत के पालनकर्ता के दर्शन को शास्त्रो व पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दोषपूर्ण माना गया है।

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