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आरएसएस की बैठक क्या यूपी चुनाव और मुसलमानों पर चर्चा के लिए हो रही है?

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उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित चित्रकूट ज़िले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस की पाँच दिन तक (9 जुलाई से 13 जुलाई) चलने वाली सालाना बैठक को संघ अपनी नियमित बैठक बता रहा है, लेकिन अगले साल पाँच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए इस बैठक को राजनीतिक दृष्टि से काफ़ी अहम माना जा रहा है.

कोरोना संक्रमण को देखते हुए संघ के ज़्यादातर पदाधिकारी बैठक में ऑनलाइन हिस्सा लेंगे.

आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने बताया कि बैठक मुख्य रूप से संगठनात्मक विषयों पर केंद्रित रहेगी, लेकिन माना जा रहा है कि बैठक में मुख्य रूप से चर्चा यूपी समेत पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों पर ही होगी.

सुनील आंबेकर के मुताबिक़, “यह बैठक सामान्यतः संगठनात्मक विषयों पर केंद्रित रहेगी. साथ ही कोरोना के संक्रमण से पीड़ित लोगों की सहायता हेतु स्वयंसेवकों द्वारा किये गए देशव्यापी सेवा कार्यों की समीक्षा की जाएगी. संभावित तीसरी लहर के प्रभाव का आकलन करते हुए, आवश्यक कार्य योजना पर विचार होगा. इस दृष्टि से आवश्यक प्रशिक्षण एवं तैयारी पर भी विचार किया जायेगा.”

बैठक में राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा के बारे में सुनील आंबेकर या संघ के दूसरे पदाधिकारी कुछ भी बताने से परहेज़ कर रहे हैं, लेकिन वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र कहते हैं कि “इस बैठक का एकमात्र एजेंडा विधानसभा चुनाव है, और वो भी यूपी चुनाव.”

‘चुनावी एजेंडा संघ ही तय करता है’

वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान मानते हैं कि बीजेपी की चुनावी रणनीति और चुनावी एजेंडा संघ ही तय करता है.

पिछले दिनों संघ प्रमुख मोहन भागवत का हिन्‍दुओं और मुसलमानों के समान डीएनए संबंधी बयान काफ़ी चर्चा में था और जानकारों के मुताबिक़, बैठक से ठीक पहले संघ प्रमुख का यह बयान अकारण नहीं था.

आरएसएस के एक वरिष्ठ प्रचारक नाम ना छापने की शर्त पर कहते हैं कि मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की सक्रियता के बावजूद मुस्लिम समुदाय के लोग आरएसएस से नहीं जुड़ पा रहे हैं, इस बात को लेकर संघ में काफ़ी मंथन हो रहा है.सांकेतिक तस्वीर

मुसलमानों को लेकर चिंता

उनके मुताबिक़, “बैठक में राष्ट्रवादी मुसलमानों को अपनी विचारधारा से जोड़ने की दिशा पर भी चर्चा होनी है. संघ का शीर्ष नेतृत्व इस बात को लेकर चिंतित है कि मुस्लिम समुदाय अभी भी राष्ट्रवादी सोच वाले दलों से दूरी बनाए हुए है.”

संघ के पदाधिकारी बैठक के राजनीतिक उद्देश्यों पर भले ही कुछ नहीं कह रहे हैं, लेकिन जानकारों का मानना है कि चर्चा और चिंतन का मुख्य विषय यूपी समेत पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव ही हैं.

वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र कहते हैं कि “अरविंद शर्मा के मामले में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जो स्टैंड लिया, उसकी वजह से संघ इनके साथ है. हालांकि संघ की रणनीति यही होगी कि वो बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाएगा, ना कि योगी के पक्ष में.”

“संघ के लोग चुनाव में अभी से लग जाएंगे और निश्चित तौर पर इस संबंध में इसी बैठक में कोई रणनीति तैयार होगी. संघ के लोग अब बीजेपी से अलग होकर काम करेंगे, अलग फ़ीडबैक लेंगे और ज़्यादा लोगों तक अपनी पहुँच बनाएंगे.”

किसान आंदोलन भी एक वजह

दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन की वजह से हाल ही में पंचायत चुनाव में बीजेपी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हार का सामना करना पड़ा था. ये अलग बात है कि ज़िला पंचायत अध्यक्षों के चुनाव में ज़्यादातर सीटें बीजेपी ने जीतीं.

आरएसएस की किसान शाखा, भारतीय किसान संघ से जुड़े एक पदाधिकारी कहते हैं, “संघ की कोशिश होगी कि इस मुद्दे को ज़्यादा तूल ना दी जाए. वैसे भी यूपी में किसान आंदोलन का उतना प्रभाव नहीं है.”

लेकिन वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र कहते हैं कि कृषि क़ानूनों पर भारतीय किसान संघ का कोई स्टैंड ना लेना किसानों के बीच उनकी पहुँच को और ज़्यादा कम कर सकता है.

वे कहते हैं कि “आरएसएस का किसान संगठन वैसे भी बहुत सक्रिय नहीं है. विधेयक पारित होने पर इनके संगठन ने विरोध भी नहीं किया और ना ही अपनी स्थिति स्पष्ट की. तो किसानों के बीच उसकी विश्वसनीयता और भी संदिग्ध हो गई.”

धर्मांतरण का मुद्दा

जानकारों के मुताबिक़, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की शुरुआत के साथ ही आरएसएस अब मथुरा में कृष्ण जन्म-भूमि और वाराणसी में विश्वनाथ मंदिर की ओर भी रुख़ करेगा, भले ही अब तक इन्हें वो अपने एजेंडे से बाहर बताता हो. यही नहीं, पिछले कुछ दिनों से जिस तेज़ी से धर्मांतरण के मामले सामने आए हैं, उन पर इस बैठक में चर्चा ना हो, यह संभव नहीं है.

वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान कहते हैं कि “बीजेपी की चुनावी रणनीति और चुनावी एजेंडा संघ ही तय करता है, यह किसी से छिपा नहीं है. पिछले कुछ दिनों से जिस तरह से बीजेपी के अंदर राजनीतिक संकट की स्थिति देखी गई, वह अभी भी टली नहीं है.”

“यूपी विधानसभा चुनाव में उसकी हर संभव कोशिश यही होगी कि किस तरह हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण किया जाए. इसी मक़सद से रणनीति भी बननी है और स्वयंसेवकों को एजेंडे को क्रियान्वित करने की ज़िम्मेदारी भी देनी है. इसके अलावा अयोध्या में ट्रस्ट की ज़मीन ख़रीद मामले पर भी चर्चा होगी.”

संघ की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक़, 9 और 10 जुलाई को 11 क्षेत्रों के क्षेत्र प्रचारक और सह क्षेत्र प्रचारकों की बैठक होगी जिसमें सरसंघचालक डॉक्टर मोहन भागवत, सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले और सभी पाँच सह-सरकार्यवाह मौजूद रहेंगे. इसके अलावा संघ के सात कार्य विभागों के अखिल भारतीय प्रमुख और सह प्रमुख शामिल होंगे.

12 जुलाई को सभी 45 प्रांतों के प्रांत प्रचारक और सह प्रांत प्रचारक ऑनलाइन माध्यम से जुड़ेंगे, जबकि 13 जुलाई को संबद्ध संगठनों के अखिल भारतीय संगठन मंत्री ऑनलाइन माध्यम से बैठक में शामिल होंगे.