सुप्रीम कोर्ट ने (Supreme Court) ने मंगलवार को सूचना प्रौद्योगिकी कानून की निरस्त की गई धारा 66A को लेकर केंद्र से जवाब मांगा कि देशभर में अब तक इसके कितने मुकदमे दर्ज किए गए हैं. कोर्ट ने कहा कि यह चौंकाने वाला, परेशान करने वाला और आश्चर्यजनक है कि देश भर की पुलिस अभी भी सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66A के तहत मामले दर्ज कर रही है, जिसे 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने हटा दिया था.
कोर्ट द्वारा निरस्त की गई धारा 66A के तहत किसी भी व्यक्ति को वेबसाइट पर कथित तौर पर ‘अपमानजनक’ सामग्री साझा करने पर गिरफ्तार किया जा सकता था. इस प्रावधान को 24 मार्च 2015 को ही सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया था लेकिन, पुलिस कि ओर से निरस्त धारा 66A के तहत अभी भी देश में मुकदमें लगातार दर्ज किए जा रहे हैं. इसके खिलाफ पीयूसीएल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इस याचिका पर कोर्ट ने पहले नोटिस जारी किया था और अब आवेदन दाखिल कर दर्ज मुकदमों के आंकड़ा मुहैया कराने कि मांग की गई.
स्टिस रोहिंटन नरीमन, केएम जोसेफ और बीआर गवई की बेंच ने एनजीओ पीपल यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) की एक याचिका में नोटिस जारी कर केंद्र को सभी पुलिस स्टेशनों को धारा 66A के तहत प्राथमिकी दर्ज करने के खिलाफ सलाह देने का निर्देश देने की मांग की, जिसे 2015 में असंवैधानिक घोषित किया गया था.
धारा 66A निरस्त किए गए जाने के बाद भी हो रहे मामले दर्ज
पीयूसीएल ने याचिका में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा आईटी कानून की धारा 66A को 2015 में निरस्त किए गए जाने के बावजूद इसके तहत देश में तमाम लोगों को गिरफ्तार किया गया है. याचिका में कहा गया है कि श्रेया सिंघल मामले के बाद भी आईटी एक्ट की धारा 66A का इस्तेमाल हो रहा है.