दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन (डीएमए) ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए चिकित्सा पेशेवरों-कर्मियों (डॉक्टर, नर्स, वार्ड ब्वॉय आदि) और अस्पताल परिसरों पर हमले को रोकने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों को पर्याप्त सुरक्ष मुहैया करने का निर्देश देने की मांग की है। साथ ही याचिका में अस्पतालों और नर्सिंग होम को संरक्षित क्षेत्र घोषित करने की भी मांग की गई है।
डीएमए और उसके असम के अध्यक्ष डॉ. सत्यजीत बोरा ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि स्वास्थ्य पेशेवरों और अन्य कर्मचारियों के लिए एक सुरक्षित माहौल बनाने के लिए सुरक्षा प्रणाली विकसित करने की जरूरत है। इस संबंध में दिशा-निर्देश बनाए जाने चाहिए। मरीजों के रिश्तेदारों या उनके दोस्तों द्वारा डॉक्टरों व कर्मचारियों के खिलाफ हिंसा या मॉब लिंचिंग आदि की घटनाओं को देखते हुए ऐसा करना जरूरी हो गया है।
वकील नेहा कलिता के माध्यम से दायर याचिका में चिकित्सा सेवा पेशेवरों के खिलाफ हमले के मामलों में त्वरित सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए एक तंत्र तैयार करने का भी अनुरोध किया गया है। एसोसिएशन ने सभी राज्य सरकारों को हर स्वास्थ्य प्रतिष्ठान में स्वास्थ्य कर्मियों के साथ किसी भी तरह की हिंसा या हमले के खिलाफ चेतावनी वाले बैनर प्रमुखता से प्रदर्शित करने का निर्देश देने की मांग की है।
याचिका में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के इस दौर में चिकित्सा सेवा संस्थानों और उनके कर्मचारी हरसंभव सेवा प्रदान कर रहे हैं। डॉक्टर व स्वास्थ्य कर्मचारी सीमित या दुर्लभ संसाधनों के साथ युद्ध जैसी स्थिति से लड़ रहे हैं। 28 राज्यों में से 23 राज्यों में और आठ केंद्रशासित प्रदेशों में से दो के पास चिकित्सा स्वास्थ्य पेशेवरों और कर्मियों पर हमले को लेकर कानून हैं।
इन कानूनों में अधिकतम तीन वर्ष कैद की सजा का प्रावधान है। हालांकि अरुणाचल प्रदेश ने इस तरह की हिंसा के लिए अधिकतम 10 वर्ष तक की कैद और पांच लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान किया है। मेडिकल जर्नल ‘द लैंसेट’ के अनुसार, भारत में लगभग 75 फीसदी डॉक्टरों ने अपने जीवनकाल में या तो मौखिक या शारीरिक हिंसा का सामना किया है।