कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ने के लिए भारत में भी तेजी से टीकाकरण हो रहा है. संक्रमण से बचने के लिए फिलहाल ज्यादातर लोग घरों से काम कर रहे हैं लेकिन ये कब तक चलेगा, फिलहाल ये पक्का नहीं. ऐसे में ये सवाल भी आ रहा है कि क्या कंपनी अपने कर्मचारियों के लिए वैक्सीन लगवाना अनिवार्य कर सकती है! बता दें कि दुनिया में एक बड़ा तबका ऐसा है, जो वैक्सीन लगवाने से डरा हुआ है.
जी हां, वैक्सीन लगवाने से बचने वाला समुदाय भी है, जो कोरोना ही नहीं, बल्कि किसी भी तरह का टीका लगाने से कतराता है. ऐसे लोगों को एंटी-वैक्सर्स (anti-vaxxers) कहते हैं. ये लोग मानते हैं कि वैक्सीन के कारण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और कई दूसरी समस्याएं भी हो सकती हैं. प्रेग्नेंसी में वैक्सीन लगवाने से गर्भवती या भ्रूण को गंभीर खतरा हो सकता है, ऐसा भी इनका यकीन है.
टीकाकरण से डरने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है. यहां तक कि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) ने वैक्सीन के खिलाफ बढ़ती सोच को दुनिया के 10 सबसे बड़े खतरों में गिना है. ऐसे तबके के विरोध के बीच वैक्सीन लगवाना पक्का करने के लिए कई देशों को कानून तक लाना पड़ गया. जैसे कैलिफोर्निया में 277 बिल लाया गया, वहीं ऑस्ट्रेलिया में इसके लिए कड़ा कानून लगा. No Jab, No Pay के तहत अगर कोई अपने बच्चे का वैक्सीनेशन नहीं कराता तो उस बच्चे को स्कूल में दाखिला तक नहीं मिलेगा
अब आशंका जताई जा रही है कि वैक्सीन न लगवाने की जिद कर रहे लोगों को इसके पक्ष में लाने के लिए कंपनियां भी कदम उठा सकती हैं. अमेरिका की इक्वल एंप्लॉयमेंट अपॉर्चुनिटी कमीशन (Equal Employment Opportunity Commission) ने कंपनियों को इसपर हरी झंडी दे दी है. यानी वहां कंपनी चाहे तो कर्मचारी के लिए टीकाकरण अनिवार्य कर सकती है.
कंपनियां ये कदम सुरक्षा के नजरिए से लेती हैं ताकि बीमार कर्मचारी से संक्रमण दूसरों तक न पहुंचे. वैसे ऐसा नहीं है कि अगर कोई कर्मचारी टीका लेने से इनकार करे तो उसे नौकरी से हटा दिया जाएगा लेकिन हां, इसका नुकसान जरूर होता है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे कर्मचारी को किसी खास कंडीशन के तहत काम करना होता है ताकि दूसरों को उसकी वजह से खतरा न हो.
कंपनियां ये कदम सुरक्षा के नजरिए से लेती हैं ताकि बीमार कर्मचारी से संक्रमण दूसरों तक न पहुंचे. वैसे ऐसा नहीं है कि अगर कोई कर्मचारी टीका लेने से इनकार करे तो उसे नौकरी से हटा दिया जाएगा लेकिन हां, इसका नुकसान जरूर होता है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे कर्मचारी को किसी खास कंडीशन के तहत काम करना होता है ताकि दूसरों को उसकी वजह से खतरा न हो.
अमेरिका में फ्लू समेत कई तरह के टीके लगवाना कर्मचारियों के लिए जरूरी है. अब ये भी हो सकता है कि टीकों की इस लिस्ट में कोविड-19 भी शामिल हो जाए. वैसे कई कर्मचारी मेडिकल या धार्मिक कारणों से इससे मना भी कर देते हैं. मिसाल के तौर पर मुस्लिम-बहुत देश इंडोनेशिया में पहले कोरोना वैक्सीन का भी विरोध हुआ था क्योंकि इसके स्टोरेज के दौरान कई बार पोर्क का इस्तेमाल होता है, जो मुस्लिमों के लिए वर्जित है.
इन कारणों के बाद भी कंपनी इक्का-दुक्का कर्मचारियों के लिए बाकियों की सेफ्टी से समझौता नहीं कर सकती. यही कारण है कि अमेरिका के ही बहुत से राज्यों ने कई तरह की वैक्सीन अनिवार्य कर दी, जिन्हें न लगाने पर संक्रमण फैल सकता है.
निजी कंपनियां अगर अपने एम्प्लॉई के लिए टीका अनिवार्य कर दें तो ये भी हो सकता है कि कट्टर कर्मचारी काम छोड़कर जाने लगें. ऐसे में बहुत-सी कंपनियां ईनाम देने का तरीका भी अपना रही हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग वैक्सिनेशन करवाएं. जैसे अमेरिकी कंपनी वॉलमार्ट उन कर्मचारियों को लगभग साढ़े 5 हजार रुपए ईनाम दे रही है, जो वैक्सिनेशन का सर्टिफिकेट दिखाएं.
भारत में फिलहाल वैक्सीन की अनिवार्यता जैसा कोई नियम नहीं आया है. हालांकि टीकाकरण जोर-शोर से चल रहा है. इधर कई राज्यों से वैक्सीन की कमी की शिकायत आने के बाद इसमें नियमितता लाने के लिए अब कई विदेशी कोरोना वैक्सीन्स को भी ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) की ओर से मंजूरी मिल रही है. उम्मीद की जा रही है कि इससे टीकाकरण अभियान में और तेजी आएगी.