Home News राजनांदगांव – आदिवासी ग्रामीणों ने लॉकडाउन में श्रमदान कर बना ली 3...

राजनांदगांव – आदिवासी ग्रामीणों ने लॉकडाउन में श्रमदान कर बना ली 3 किमी सड़क अब महज…

16
0

कोरोना के संकटकाल में जहां लोग घरों में दुबक गए हैं, वहीं जिला मुख्यालय से करीब 120 किमी दूर मानपुर ब्लॉक के अंतिसंवेदनशील नक्सल प्रभावित आदिवासी गांव खुरसेकला के ग्रामीणों ने लॉकडाउन के दाैरान श्रमदान कर तीन किमी लंबी सड़क बना ली है। आजादी के बाद से पिछले करीब 70 वर्षों से ग्रामीण गांव में सड़क निर्माण की बाट जोह रहे थे। शासन-प्रशासन को दर्जनों बार आवेदन देकर थक चुके हैं। जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाते भी ग्रामीण जब थक गए तो लॉकडाउन में गांव वालों ने बैठक करके खुद ही सड़क निर्माण करने का फैसला लिया। फिर क्या…? 15 से 20 दिनों में ग्रामीणों ने कड़ी मेहनत कर श्रमदान से ही तीन किलाेमीटर लंबी सड़क बना डाली।

अब महज डेढ़ किमी का रास्ता ही बाकी रह गया है। इसे भी ग्रामीण दो-चार दिन में कम्प्लीट करने की तैयारी में है। ग्रामीणों से जब इस फैसले की पड़ताल की गई, तो इसमें गांव वालों की पीड़ा सामने आई।

ग्रामीणों ने बताया कि हर साल बारिश के दिनों में गांव टापू बन जाता है। सड़क नहीं होने से ब्लॉक मुख्यालय ही नहीं आसपास के गांव से भी संपर्क नहीं रहता। जिसके कारण बारिश से पहले कोरोना के संकटकाल में ग्रामीणों ने श्रमदान कर अपने गांव में सड़क बना ली है।

खाट में लादकर ले जाते थे मरीज

लॉकडाउन में श्रमदान कर तीन किमी तक कच्ची मुरुम वाली सड़क बनाने वाले ग्रामीणों ने बताया कि सड़क नहीं होने के कारण एंबुलेंस भी गांव से दो किमी पहले ठहर जाती थी। गर्भवती या अन्य मरीजों को खाट में लादकर दो किमी पैदल जाना पड़ता था।

पगडंडी रास्ते में कई करचनें आती थी, लेकिन अब तीन किमी तक चौड़ी रोड बना ली है। एंबुलेंस भी अब सीधे गांव तक आ सकेगी। स्कूली बच्चों को भी अब आने-जाने में किसी तरह की परेशानी नहीं होगी। ग्रामीणों ने बताया कि करीब डेढ़ किमी का रास्ता अभी बाकि हैं। दो-चार दिन में उसे भी श्रमदान से ही पूरा करेंगे।

बारिश में अब गांव नहीं बनेगा टापू

मानपुर ब्लॉक का अतिसंवेदनशील नक्सल प्रभावित आदिवासी गांव हर साल बारिश में टापू बन जाता है। गांव में सड़क नहीं होने की वजह से बारिश के दिनों में मुख्यालय ही नहीं आसपास के गांवों से भी संपर्क नहीं होता था। इन सभी समस्याओं को दूर करने के लिए ग्रामीणों ने गांव में ही बैठक करके प्रस्ताव बनाया और श्रमदान करके ग्रामीणों ने तीन किमी तक कच्ची सड़क बना डाली।

ग्रामीण सूरजु टेकाम, मोहित कुमार, श्रवण सिंह, कुंवरलाल व अन्य महिलाओं ने कहा कि अब बारिश में हमारा गांव टापू नहीं बनेगा। अन्य गांवों से भी बारिश में संपर्क नहीं टूटेगा। सड़क बनने से आवाजाही सुगम तो होगी ही, वहीं गांव का विकास भी होगा। ग्रामीणों ने बताया कि इसी चार किमी की सड़क को बनाने के लिए सैंकड़ों बार शासन-प्रशासन से गुहार लगा चुके हैं। लेकिन किसी ने भी सुध नहीं ली। सड़क नहीं होने से गांव का विकास पिछड़ता जा रहा था। ग्रामीणों ने क्षेत्र के अन्य आदिवासी गांवों में सड़क समेत मूलभूत की सुविधा पहुंचाने की मांग की है।

अब एंबुलेंस गांव आ जाएगी

सड़क नहीं होने की वजह से गांव तक एंबुलेंस नहीं आती थी। गर्भवतियों को खाट में लेकर दो किमी जाना पड़ता था। बच्चें भी स्कूल नहीं जा पाते थे। बहूत दिक्कत होती थी। अब सड़क बन जाने से एंबुलेंस भी गांव तक आ जाएगी। स्वास्थ्य के साथ सड़क बनने से कई तरह की सुविधा होगी। ग्रामीणों को भी आने-जाने में सोहलियत होगी।

जरूरी था सड़क निर्माण करना

शासन-प्रशासन को कई आवेदन दिए। जनप्रतिनिधियों से भी सैंकड़ों बार मिल चुके, लेकिन किसी ने भी सुध नहीं ली। इसलिए ग्रामीणों ने श्रमदान कर सड़क बना ली है। अब बारिश में टापू बनने जैसी स्थिति नहीं होगी। क्षेत्र में ऐसे दर्जनों आदिवासी गांव हैं, जो शासन-प्रशासन की योजनाओं से उपेक्षित हैं। सरकार को इन गांवों तक मूलभूत की सुविधा पहुंचाने पर विचार करना चाहिए।