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महात्मा गांधी का सुराजी तिरंगा, जिसे केवट परिवार ने आज भी सहेज कर रखा…

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 देश की पहचान एक झंडा, एक निशान। ये नारा इन दिनों जोर-शोर से चल रहा है। कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद से देश में एक झंडे की बात की जा रही है। गांधी जी के नेतृत्व में लाखों लोग भारतीय झंडे को लेकर चला करते थे। बापू द्वारा दिए गए सुराजी तिरंगे को आज भी सहेज कर पूजा जा रहा है। छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी इंदरू केवट के परिवार के लोग आज भी उस झंडे को गीता या कुरान की तरह सबसे पवित्र मानकर पूजा करते हैं। उल्लेखनीय है कि इंदरू को कांकेर का गांधी कहा जाता है। उनके नाम से वहां कॉलेज संचालित है।

गांधी के झंडे की कहानी

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी इंदरू केवट के पोते तुलसी राम बताते हैं कि महात्मा गांधी का 1920 में छत्तीसगढ़ आगमन हुआ था। जहां गांधी जी द्वारा धमतरी में कंडेल सत्याग्रह चलाया गया। इस आंदोलन में शामिल होने इंदरू केवट अपने साथियों के साथ पैदल जंगलों के रास्ते पहुंचे थे। इस दौरान गांधी जी ने दादा इंदरू केवट को चरखा युक्त सुराजी तिरंगा दिए थे। वे कहते हैं कि इस तिरंगे के पीछे हजारों की संख्या में लोग गांधी के मार्गों पर चलते हुए आंदोलन किया करते थे।

गांधी के झंडे को सहेजकर रखने की परंपरा

बापू द्वारा दिए गए सुराजी झंडे को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का यह परिवार आज भी सहेजकर रखे हुआ। पुराना होने के कारण यह खराब होने की स्थिति में है इसलिए इसे दिन विशेष को ही निकाला जाता है। इंदरू केवट के नाती बताते हैं कि इसे शुरू से सहेजकर रखा गया है। पहले दादा जी 45 साल तक इसे फहराते थे। निधन के बाद से पिता हीरालाल द्वारा 17 सालों तक फहराया जाता था। इसके बाद से वे स्वयं 28 वर्षों तक इसे फहराया। 2010 से बेटा गिरधारी निषाद इसे फहरा रहा है। वे कहते हैं कि यह परंपरा दादा जी के जमाने से चली आ रही है।

कौन हैं इंदरू केवट

इंदरू के पौत्र तुलसीराम के मुताबिक कांकेर जिले में कोतरी नदी के किनारे ग्राम सुरंगदोह में एक मध्यम परिवार में इंदरू केवट का जन्म 1895 में हुआ था। महज 25 साल की उम्र में उत्तर बस्तर के सैकड़ों ग्रामीणों को लेकर पैदल चलते हुए घने जंगलों का सफर तय महात्मा गांधी के धमतरी में आयोजित कंडेल सत्याग्रह में शामिल हुए।

गांधी जी की बातों से प्रभावित होकर उन्होंने बापू के रास्ते पर चलना शुरू किया। कांकेर में इंदरू ने कई महत्वपूर्ण आंदोलन कर अंग्रेजी हुकूमत को हिला दिया था। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान बस्तर के साल वनों की कटाई की जा रही थी।

इंदरू ने इसका कड़ा विरोध किया। अंग्रेज हुकूमत ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद तकरीबन 400 बैलगाड़ी में सवार होकर ग्रामीणों गिरफ्तारी का विरोध किया। वे बताते हैं कि इंदरू केवट को बस्तर का गांधी कहा जाता है।