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खदान में ओबी शुरू करने की कवायद, अफ़सरों ने किया सर्वे…

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दीपका में काम शुरू कराने के लिए एसईसीएल प्रबंधन ने कवायद शुरू कर दी है। खदान के अंदर अफसर सर्वे कर रिपोर्ट बना रहे हैं, ताकि डंपर व अन्य वाहन के परिचालन में किसी तरह की दिक्कत न आ सके। डोजर व ग्रेडर मशीन से जमीन समतलीकरण सड़क दुरुस्त की जाएगी। पानी में तैर रहे पानी निकासी के पंप को रेस्क्यू कर किनारे लाया गया है। प्रबंधन ने नुकसान का आंकलन भी करना शुरू कर दिया है।

बौराई लीलागर नदी के पानी से भरी दीपका खदान को अब खाली कर उत्पादन शुरू करने प्रबंधन की तरपᆬ से कार्य योजना बनाने का काम शुरू हो गया है। बताया जा रहा है कि प्रबंधन ने मंगलवार को पहले चरण में गोताखोर बुलाकर पानी में तैर रहे पानी निकासी के पंप को किनारे लाया। वहीं छह पंप अभी भी पानी के अंदर डूबे हुए हैं। इसके साथ सभी अफसरों की ड्यूटी खदान में लगा दी गई है, जो खदान के सभी क्षेत्र का निरीक्षण कर रहे हैं। वाहनों के आवागमन मार्ग को परीक्षण किया जा रहा है। किस स्थान पर मिट्टी कमजोर हो चुकी है और धसकने का भय है। इसके साथ ही पहले मिट्टी निकासी (ओबी) का काम किया जाना है, इसलिए खदान तक पहुंच मार्ग भी दुरस्त करने की कवायद चल रहा है। डोजर एवं ग्रेडर मशीन को इस कार्य में लगा दिया गया है। प्रबंधन की मंशा है कि जिस स्थल पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा है और मिट्टी निकाली जा सकती है, वहां पहले काम शुरू कराया जाएगा। हालांकि हरदीबाजार पहुंच पुराने मार्ग ओल्ड दीपका क्षेत्र में निजी कंपनी ने मिट्टी उत्खनन शुरू कर दिया है। संभावना जताई जा रही है कि यहां 15 दिन के बाद कोयला उत्खनन का काम प्रारंभ कराया जा सकता है। सर्वे के साथ ही अफसर नुकसान का भी आंकलन कर रहे हैं। पूरी रिपोर्ट तैयार कर मुख्यालय भेजी जाएगी। प्रबंधन से जुड़े लोगों का कहना है कि पहले पानी कम किया जाएगा। इसके बाद डूबी हुई मशीन बाहर निकाली जाएंगी। छह पंप भी पानी में डूबे हुए हैं। इन्हें निकालने का प्रयास किया जा रहा है।

खदान से पानी निकालने के लिए प्रबंधन ने आठ पंप लगाने की योजना बनाई है। पहले चरण में चार पंप लगाने का काम शुरू हो गया है। इसके बाद शेष चार पंप लगाए जाएंगे। प्रत्येक पंप की क्षमता 5000 गैलन प्रति मिनट पानी निकालने की क्षमता है। बुधवार से पानी निकासी का काम शुरू हो जाएगा। इस पानी को लीलागर नदी में ही छो़ड़ा जाएगा, ताकि हसदेव नदी में जाकर समाहित हो जाए। जल्द स्थिति दुरुस्त करने के लिए अन्य खदान से भी पंप मंगाए जा रहे हैं।

दीपका खदान में लगभग 12 सौ करोड़ से भी ज्यादा लागत से बिछे कन्वेयर बेल्ट सिस्टम में डंपिंग यार्ड की मिट्टी, बोल्डर व पत्थर जमा हो गए हैं। इन्हें हटाने के लिए प्रबंधन ठेका कंपनी को अधिकृत कर दिया है। बताया जा रहा है कि कन्वेयर बेल्ट की सफाई भी शुरू हो गई है। बेल्ट के चारों मिट्टी होने से यह काम मजदूरों को ही करना पड़ेगा। इससे वक्त लगने की संभावना जताई जा रही है। जब तक कन्वेयर बेल्ट चालू नहीं होगा, तब तक डिस्पैच कार्य भी बंद रखना होगा। जानकारों का कहना है कि इस कार्य में कम से कम एक माह का वक्त लग सकता है।

दीपका में बने सायलो से एनटीपीसी सीपत को कोयला आपूर्ति किया जाता है। इस सायलो में खदान के अंदर से सीधे कोयला आता है और मालगा़ड़ी में गिरता है। कन्वेयर बेल्ट बंद होने से सायलो को भी बंद करना पड़ गया है। फिलहाल खदान से कोयला डिस्पैच नहीं हो रहा है। स्टॉक में पड़ा कोयला ही बाहर भेजा जा रहा है, पर एक-दो दिन में यह भी खत्म हो जाएगा। ऐसी स्थिति में पावर प्लांट को कोयला नहीं मिलेगा।

खदान में पानी भरने से डंपर, सावेल व ड्रिल मशीन के ऑपरेटर खाली हो गए हैं। कर्मी ड्यूटी पर अवश्य जा रहे हैं, लेकिन उन्हें वाहन वर्कशॉप से बाहर नहीं निकाल रहे हैं। प्रबंधन ने अभी काम बंद रखने कहा है। उधर मेंटेनेंस कार्य में लगे कर्मियों का काम बढ़ गया, लगातार काम कर मशीनों का मेंटेनेंस कर रहे हैं। इसके साथ ही डोजर व ग्रेडर मशीन के ऑपरेटर जमीन समतलीकरण कार्य कर रहे हैं।