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छत्तीसगढ़ : अनोखी अदालत : जहां अपराध सिद्ध होने पर देवी-देवताओं को मिलती है सजा

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छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल में निवासरत आदिवासी समुदाय के लोग सदियों से विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा करते आ रहे हैं। यहां देवताओं और इंसान का रिश्ता आस्था व विश्वास पर टिका हुुआ है। भक्त पूरी भक्ती के साथ अपने देवता की आस्था में रमा रहता है और उसपर प्रगाढ़ विश्वास रखता है, आस्था और विश्वास में कमी होने की स्थिति में उन्हीं देवी देवताओं को दैविय न्यायालय की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। एक बेहद अनोखी प्रथा यहां सदियों से चली आ रही है, जिसमें न्याय का दरबार लगता है और देवी-देवताओं को भी सजा मिलती है।

जी हां, जिला मुख्यालय कोंडागांव से 60 किलोमीटर की दूर पर सर्पिलाकार केशकाल घाट की वादियों में सदियों पुराना भंगाराम माई का दरबार है। जिसे देवी-देवताओं के न्यायालय के रूप में जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि भंगाराम की मान्यता के बिना क्षेत्र में स्थित नौ परगना में कोई भी देवी-देवता कार्य नहीं कर सकते।

वर्ष में एक बार भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदा को मंदिर प्रांगण में विशाल जातरा, मेला आयोजित होता है। इस साल भी भंगाराम माई के दरबार में देवी- देवताओं का विशाल मेला आयोजित हुआ। जिसमें बड़ी तादात में श्रद्धालु अपने देवी-देवताओं के साथ पहुंचे। बता दें कि इस न्यायालय स्थल में महिलाओं का आना वर्जित है।

अपराधी को दंड और वादी को मिलता है न्याय

आस्था व विश्वास के चलते जिन देवी देवताओं की लोग उपासना करते हैं, अगर वे अपने कर्तव्य का निर्वहन न करें तो उन्हीं देवी-देवताओं को ग्रामीणों की शिकायत के आधार पर भंगाराम के मंदिर में सजा मिलती है। देवी-देवता एक कठघरे में खड़े होते हैं, जहां भंगाराम न्यायाधीश के रूप में विरामान होते हैं। यहां अपराधी को दंड व वादी को न्याय मिलता है।

न्यायाधीश के रूप में सुनाते हैं फैसला

गांव में स्थापित देवी-देवताओं द्वारा गांव में होने वाली किसी प्रकार की व्याधि, परेशानी को दूर न कर पाने की स्थिति में देवी-देवताओं को ही दोष माना जाता है। विदाई स्वरूप उक्त देवी-देवताओं के नाम से चिन्हित बकरी मुर्गी सोने चांदी आदि के साथ गांव के देवी देवता लाट, बैरंग, डोली आदि को लेकर ग्रामीण साल में एक बार लगने वाले भंगाराम जातरा में पहुंचते हैं।

जहां भंगाराम की उपस्थिति में गांव गांव से आए हुए शैतान देवी देवताओं की एक एक कर शिनाख्त के पश्चात अंगा डोली लाड बैरंग आदि के साथ लाए चूजे, मुर्गी, बकरी, डांग, आदी को खाई घुमा गहरे गड्ढे किनारे फेंका जाता है। जिसे ग्रामीण कारागार कहते है। देवी देवताओं पूजा अर्चना के पश्चात मंदिर प्रांगण में अदालत लगती है। देवी-देवताओं पर लगने वाले आरोपों को गंभीरता से सुनवाई होती है।

आरोपी पक्ष की ओर से दलील पेश करने सिरहा, पुजारी, गायता, माझी, पटेल आदि ग्राम प्रमुख उपस्थित होते हैं। जहां दोनों पक्ष की गंभीरता से सुनवाई के पश्चात आरोप सिद्घ होने पर फैसला सुनाया जाता है। मंदिर में देवी-देवताओं को खुश करने के लिए बलि देने व भेंट चढ़ाने का विधान है।

मंदिर प्रांगण में स्थित है कारागार

भंगाराम बाबा के मंदिर परिसर में एक गड्ढे नुमा घाट है। जिसे कारागार कहते है। सजा के तौर पर दोष सिद्घ होने के पश्चात देवी-देवताओं के लाट, बैरंग आंगा, डोली आदि को गड्ढे में डाला जाता है।