Home News सोंढूर ही नहीं तांदुला भी जोह रहा बाट इंद्रावती की

सोंढूर ही नहीं तांदुला भी जोह रहा बाट इंद्रावती की

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गैर मानसून काल में ओड़िशा से बस्तर में जलबहाव के लिए तरसने वाली बस्तर की प्राणदायिनी इंद्रावती नदी पर सिर्फ धमतरी जिले के लोगों की ही नजर नहीं है बल्कि बालोद-दुर्ग के लोग भी इंद्रावती की बाट जोह रहे हैं। 1974 में अविभाजित मध्यप्रदेश के समय बस्तर और रायपुर संभाग में सिंचाई सुविधा के विस्तार के लिए बनाए गए महानदी और गोदावरी बेसिन के प्रोजेक्ट में अनेक सिंचाई परियोजनाएं सर्वेक्षित कर शामिल की गई हैं। महानदी बेसिन से इंद्रावती सब बेसिन को आपस में लिंक परियोजना के रूप में जोड़ने का प्रोजेक्ट भी बनाया गया था। उसी प्रोजेक्ट के आधार पर हाल ही में नगरी-सिहावा की सत्ताधारी दल कांग्रेस की महिला विधायक डॉ लक्ष्मी ध्रुव ने इंद्रावती नदी को सोंढूर जलाशय से जोड़ने की मांग करके बस्तर में हलचल बढ़ा दी है। हालांकि चित्रकोट जलप्रपात के समीप नारायणपाल से 139 किलोमीटर दूर धमतरी जिले में स्थित सोंढूर तक इंद्रावती का पानी ले जाना आज की स्थिति में वन संरक्षण अधिनियम-1980 के अंतर्गत उतना आसान नहीं है। इसके लिए सरकारों को काफी पापड़ बेलने पड़ेंगे। इस बीच इंद्रावती सब बेसिन को महानदी बेसिन से जोड़ने प्रस्तावित प्रोजेक्ट में इंद्रावती का पानी बालोद जिला स्थित तांदुला जलाशय तक पहुंचाने की बात भी शामिल है। जगदलपुर से तांदुला जलाशय की दूरी 229 किलोमीटर और नारायणपाल से तांदुला जलाशय की दूरी 198 किलोमीटर है। जल संसाधन विभाग के इंजीनियरों से चर्चा करने पर बताया गया कि आज के समय में जब एक-एक बूंद पानी के लिए अपने-अपनों से उलझने से नहीं झिझक रहे हैं वहां बस्तर में प्राणदायिनी का दर्जा प्राप्त इंद्रावती को महानदी बेसिन से बस्तरवासी शायद ही जोड़ने के लिए राजी होंगे। उल्लेखनीय है कि सोंढूर जलाशय से इंद्रावती नदी को जोड़ने जल संसाधन विभाग ने प्रारंभिक सर्वे करके रिपोर्ट राज्य शासन को सौंप दी है।

अंग्रेजों के जमाने का है तांदुला बांध

बालोद जिला मुख्यालय से दो किलोमीटर दूर तांदुला जलाशय तांदुला नदी पर स्थित है। तांदुला नदी शिनवाथ नदी की और शिवनाथ महानदी की सहायक नदी है। अंग्रेजों के जमाने में 1910 में तांदुला जलाशय के निर्माण का काम शुरू किया गया था जो 11 सालों में बनकर तैयार हो गया था। 1921 में बनकर तैयार हुए तांदुला जलाशय के आसपास दो अन्य जलाशयों खरखरा और गोंदली जलाशय को तांदुला से मिलाकर बाद में रिजर्वायर बना दिया गया। तांदुला जलाशय से स्टील नगरी भिलाई और दुर्ग तक नहरों के जरिए पानी पहुंचाया जा रहा है। दरअसल इसी रिजर्वायर में इंद्रावती नदी का पानी मिलाने की योजना बनाई गई है। इस प्रोजेक्ट को अभी खारिज नहीं किया गया है। उल्लेखनीय है कि इंद्रावती नदी बस्तर में 233 किलोमीटर बहती है पर इस पर सिवाय छोटे-छोटे एनीकटों के निर्माण के अलावा कोई बड़ा प्रोजेक्ट आज तक तैयार नहीं किया जा सका है। इस कारण इंद्रावती पूरे साल में करीब 270 टीएमसी पानी महाराष्ट्र-तेलंगाना सीमा पर गोदावरी नदी में छोड़ देती है।