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जहां पोस्टिंग है कालेपानी की सजा, वहां पांच सालों से ट्यूब के सहारे नदी लांघ शिक्षा की अलख जगा रहे शिक्षक…

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नारियल पेड़ की टहनी से पतवार और ट्यूब के सहारे पिछले पांच साल से एक शिक्षक बच्चों का भविष्य संवार रहा है। यह तस्वीर बाहर आई है नक्सलगढ़ कहे जाने वाले बीजापुर जिले के चेरकण्टी से। शिक्षक राजू पुजारी पिछले पांच साल से ट्यूब के सहारे वेरूदी नदी को पार करने का जोखिम उठाते हैं। मकसद केवल गांव के बच्चों को तालीम देकर उन्हें काबिल बनाना। बीजापुर थाना इलाके का चेरकण्टी गांव उन पिछड़े गांवों में से एक है, जहां प्रशासन की कोई पहुंच नहीं है। पांच साल पहले ही गांव में स्कूल की बुनियाद दोबारा रखी गई। चेरकण्टी में 2005 तक प्राइमरी स्कूल संचालित था, लेकिन जुडूम की शुरूआत के बाद यह स्कूल भी बंद हो गया। 2010 में जुडूम पर प्रतिबंध लगने के बाद वीरान हो चुका चेरकण्टी गांव जब दोबारा बसने लगा तो ग्रामीणों ने स्कूल फिर से खोलने की मांग की। 2014 में चेरकण्टी में स्कूल दोबारा शुरू किया गया। राजू पुजारी की नियुक्ति उसी समय की गई। गंगालूर इलाके से बहती वेरूदी नदी आगे चलकर मिंगाचल में विलय हो जाती है और चेरकण्टी गांव वेरूदी नदी के पार ही बसा है। हर साल बारिश शुरू होते ही नदी का जलस्तर बढ़ने लगता है। पिछले एक माह से बीजापुर जिले में हो रही मूसलाधार बारिश से नदी इस समय भी उफान पर है। नदी में बाढ़ के बावजूद जोखिम की परवाह न करते हुए शिक्षक राजू पुजारी नियमित ट्यूब से नदी को पार कर स्कूल पहुंच रहे हैं ताकि बच्चों की पढ़ाई प्रभावित ना हो। कर्तव्य के प्रति शिक्षक के समर्पण को देखकर ट्यूब से पार कराते वक्त कुछ ग्रामीण भी उन्हें सहयोग करते हैं। जिस ट्यूब से शिक्षक नदी पार आना-जाना करते हैं वह गांव के ही एक ग्रामीण की है, जिसने अपनी ट्यूब शिक्षक राजू पुजारी के अलावा स्वास्थ्य अमले की सुविधा के लिए भी उपलब्ध कराई है। राजू पुजारी ने नईदुनिया को बताया कि चेरकण्टी गांव विकास के मामले में काफी पिछड़ा है। मूलभूत सुविधाओं का गांव में अभाव है। नदी में बाढ़ की परिस्थिति हर साल बनती है। शिक्षक राजू का निवास भी नदी के इस पार पांच किमी दूर चेरपाल में है, लेकन वे अधिकतर समय नदी पार ही रहते हैं। ग्रामीणों ने शिक्षक के लिए सुविधा की मांग की है।