Home News 14 साल बाद उजड़े आशियानों को संवार रहे आदिवासी परिवार…

14 साल बाद उजड़े आशियानों को संवार रहे आदिवासी परिवार…

2
0

11 एकड़ जमीन, मकान, गाय-बकरियों को छोड़कर चौदह साल तक शरणार्थिणों की तरह जीने के बाद आखिरकार थक हारकर आयतु पत्नी-बच्चे के साथ अपने गांव लौट आया। आयतु और उसका परिवार फिर से तिनका-तिनका जोड़ आशियाना बसाने मजबूर है। यह कहानी केवल आयतु की नहीं बल्कि हल्बा पारा के दर्जनों परिवारों की है।

जिला मुख्यालय से 18 किमी दूर पदेड़ा का आश्रित गांव हल्बा पारा फिर से आबाद होने लगा है। 14 साल बाद परिवार गांव वापसी कर रहे हैं। वापसी का संबंध पुनर्वास नीति से नहीं बल्कि वे स्वेच्छा से पैतृक गांव लौट रहे हैं। बीते एक माह में एक दर्जन से अधिक परिवार गांव आकर बस चुके हैं। लगभग 75 लोगों की आबादी पीने के लिए साफ पानी की मोहताज है। इन्हें उजड़े आशियाने फिर से संवारने कोई मदद भी नहीं मिल रही है। गांव के नजदीक बहते नाला किनारे गड्ढे खोदकर मटमैला पानी से प्यास बुझा रहे हैं वहीं ताड़ के पत्तों से छत तैयार कर झोपड़ी में दिन- रात काट रहे हैं।

वारदात के बाद किया था पलायन

हल्बापारा की दास्तां जुडूम के सताए उन गांवों में से एक है, जो साल 2005 में खाली हो गए थे। 2006-07 में गंगालूर मार्ग पर पोंजेर के नजदीक नक्सलियों ने विस्फोट किया था, जिसमें 24 पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे। उस घटना के बाद हल्बापारा के लोगों को लगा कि सुरक्षा बल के जवान और जुडूम कार्यकर्ताओं का कहर उन पर टूटेगा। इस भय से पूरा गांव पलायन करने मजबूर हुआ था। तब हल्बापारा में 150 से ज्यादा मकान हुआ करते थे। आयतू राम के अनुसार पोंजेर कांड के बाद गांव के लोग इस कदर भयभीत थे कि रात के अंधेरे में ही कपड़े-लत्ते लेकर गांव छोड़ जाना पड़ा था। बाकी ग्रामीणों की तरह आयतु भी परिवार को लेकर बीजापुर पहुंच गया।

सरकारी मदद मांगी

14 साल तक शरणार्थियों की तरह जीवन यापन कर लौट रहे बेसहारों को सहारा देने वाला कोई नहीं है। न तो प्रशासन को इन परिवारों की फिक्र है और न ही जनप्रतिनिधियों को इनकी सुध लेने की फुर्सत। हल्बापारा पहुंची नईदुनिया टीम को ग्रामीणों ने अपने हालात बताते सरकारी मदद की मांग की। ग्रामीणों की प्रमुख मांग साफ पानी उपलब्ध कराने की है। गांव का इकलौता हैण्डपंप अब बिगड़ा हुआ है। दूर-दूर तक कोई दूसरी बसाहट नहीं है। गांव में बिजली भी नहीं है। ग्रामीणों की मांग है कि सोलर लाइट, बच्चों के पढ़ने के लिए स्कूल और पक्की सड़क की सुविधा दी जाए।