छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव (Chhattisgarh Assembly Election) में कांग्रेस की जीत का एक बड़ा कारण उसके घोषणा पत्र को माना जाता है. वहीं इस घोषणा पत्र में सबसे ज्यादा असरदार माना गया प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी (Prohibition of liquor) के वादे को. कांग्रेस (Congress) के इस एक वादे ने अब उसे कई बहाने बनाने पर मजबूर कर दिया है. एक वादा और उसे न पूरा करने के अब कितने बहाने. जी हां राज्य में पूर्ण शराबबंदी को लेकर कांग्रेस की सरकार अब कुछ यूं ही नजर आ रही है. जैसे-जैसे वक्त गुजरता जा रहा है. क्या विपक्ष क्या आम आदमी कांग्रेस के सामने लोग एक ही बड़ा सवाल करते नजर आते हैं कि पूर्ण शराबबंदी कब होगी.
प्रदेश के आबकारी मंत्री कवासी लखमा शराबबंदी के लिए किसी भी कार्ययोजना पर काम करते कम और रोज नए बहाने गढ़ते जरूर नजर आते हैं. आईए नजर डालते हैं सरकार बनने के बाद उनके अब तक किए गए बहानों पर. हाल ही में एक अगस्त को मंत्री कवासी लखमा ने कहा था कि शराबबंदी पर सिर्फ मीडिया और विपक्ष के लोग ही हल्ला कर रहे हैं. आम जनता इसपर कोई आपत्ति नहीं जता रही है. इससे पहले वे विधानसभा सदन में कह चुके हैं कि शराबंदी पर नोटबंदी की तरह निर्णय नहीं लिया जा सकता है, इसके लिए योजना बनाकर काम कर रहे हैं.
अब जोड़ा भगवान से अब शराबबंदी को लेकर भगवान आड़े आ गए हैं. बीते 11 अगस्त को मंत्री कवासी लखमा ने शराबबंदी पर एक नई बात बता दी. यह बिल्कुल ताजा बयान है. मत्री कवासी लखमा का कहना है कि शराबबंदी उनके समाज से जुड़ा मामला है. बस्तर और सरगुजा के आदिवासी देवी-देवताओं को शराब चढ़ाते हैं. ऐसे में शराबबंदी को लेकर वो जल्दबाजी कैसे करें.
वहीं आबकारी मंत्री के इस बयान को बीजेपी (BJP) शराबबंदी से बचने एक और नया पैतरा बता रही है. पूर्व मंत्री और बस्तर से आदिवासी नेता केदार कश्यप का आरोप है कि कवासी लखमा और कांग्रेस तो चाहती ही है कि आदिवासी समाज के लोग शराब का नशा करते ही रहें. जाहिर तौर पर शराबबंदी का किया वादा अब कांग्रेस को ना निगलता बन रहा है न उगलते. बहरहाल शराबबंदी सरकार जब करे तब करे, लेकिन तब तक सरकार के आबकारी मंत्री अपने चुटीले बयानों से लोगों का मन तो बहला ही रहे हैं. देखना यह है कि वह वोटर जिसने शराबबंदी की ही शर्त पर कांग्रेस को वोट दिया है, वह शराबबंदी से ही खुश होगा या बहानों और बयानों से रोज होता मंनोरंजन ही जनता के लिए काफी है.