14 साल बाद पदमूर में स्कूल का सपना पूरा होने के बाद जल्द ही वहां के निवासियों को पक्की इमारत वाले स्कूल की सौगात मिलेगी। जिला प्रशासन ने पदमूर में स्कूल बिल्डिंग बनवाने का निर्णय लिया है, जिसमें ग्रामीण भी सहभागी बनेंगे। स्कूल भवन के लिए सीमेंट, ईट, रेत, छड़ आदि जरूरी निर्माण सामग्री प्रशासन ग्राम पंचायत को उपलब्ध कराएगा। भवन निर्माण की जिम्मेदारी ग्रामवासियों की होगी। नईदुनिया से चर्चा में प्रभारी कलेक्टर राहुल वेंकट का कहना था कि ग्रामीणों के लगातार कोशिशों की बदौलत पदमूर में चौदह साल बाद स्कूल खुल पाया। उनके प्रयास से ही आज 52 बच्चे झोपड़ीनुमा स्कूल सही मगर शिक्षा के अपने अधिकार से वंचित नहीं हैं। पदमूरवासियों की यह मेहनत उनकी शिक्षा के प्रति जागरूकता को दर्शाता है, लिहाजा प्रशासन ने पदमूर में स्कूल के लिए पक्की इमारत का निर्माण कराने का निर्णय लिया है। चूंकि गांव में दोबारा स्कूल खुलवाने के पीछे ग्रामीणों की मेहनत है, इसलिए प्रशासन की मंशा भी यही है कि पदमूर के लोग ही बच्चों के लिए विद्या के मंदिर के निर्माण में अपना योगदान दें। गौरतलब है कि विगत दिनों बरूदी नदी पार बसे पदमूर में स्कूल दोबारा खोला गया। हालांकि पदमूर में स्कूल 1962 से संचालित था, लेकिन सलवा जुडूम के दौरान माओवादी उत्पात के चलते शिक्षा के मंदिर के पट बंद हो गए थे। जुडूम के दौरान राहत शिविरों में पनाह लेने के बाद ग्रामीण जब वापस गांव लौटे तो उन्हें बच्चों की पढ़ाई-लिखाई की चिंता सताने लगी। गांव में स्कूल न होने का मलाल प्रत्येक ग्रामीण को था, जिसके बाद ग्रामीणों ने आपसी सहमति से गांव में दोबारा स्कूल खोलने की ठानी। नतीजा यह रहा कि जिस इलाके में माओवादी अपनी समानांतर सरकार चलाने का दावा करते हैं, वहां नक्सली स्मारक के ठीक सामने ग्रामीणों द्वारा श्रमदान से बनाए गए झोपड़ी में विद्या का मंदिर खुल गया।