Home News गढ़चिरौली में ही क्यों होते हैं नक्सली हमले?

गढ़चिरौली में ही क्यों होते हैं नक्सली हमले?

10
0

गढ़चिरौली देश का एक ऐसा इलाका है, जिसे लाल गलियारा (Red Corridor) में शामिल किया गया है. लाल गलियारे का मतलब है वो जगह जहां नक्सलवादी सबसे ज़्यादा सक्रिय हैं. लाल गलियारा (Red Corridor) में देश के 10 राज्यों के 74 जिले नक्सल प्रभावित हैं. गढ़चिरौली के लिए यह भी कहा जाता है कि यहां सरकार का नहीं बल्कि नक्सलवादियों का राज है. ये ऐसा घना जंगल है जिसे नक्सलवादियों का सबसे सुरक्षित अड्डा माना जाता है और यहां घुसना किसी के लिए भी जानलेवा साबित हो सकता है.इस इलाके में नक्सली मौका मिलते ही घात लगाकर हमला कर देते हैं. वो ज़मीन में आईईडी (Improvised Explosive Device) लगाकार सुरक्षा बलों को निशाना बनाते हैं.

क्षेत्रीय आकार की बात करें तो यह जिला महाराष्ट्र के दक्षिणपूर्वी कोने में स्थित है. यह पश्चिम में महाराष्ट्र के चंद्रपुर और उत्तर में गोंदिया जिले से लगा है. पूर्व में इस जिले की सीमा छत्तीसगढ़ और दक्षिण और दक्षिण पश्चिम में तेलंगना से लगी है. यह आदिवासी जिला है जिसमें गोंड और माडिया समुदाय के लोगों की अच्छी खासी संख्याहै. इस जिले में बंगाली समुदाय के लोग भी हैं जो कि 1972 के बंगाल विभाजन के समय हां बसाए गए थे.

कैसे बना लाल गलियारा 
80 के दशक में जब गढ़चिरौली में नक्सलवाद ने अपनी जड़ें फैलानी शुरू कीं, तो नक्सलियों ने ना सिर्फ सुरक्षाबलों को निशाना बनाया, बल्कि उन्होंने घने जंगलों और जंगली जानवरों को भी कमाई का ज़रिया बना लिया.
इस इलाके में अक्सर नक्सलवादी घने जंगलों के बीच या फिर छोटी-छोटी पहाड़ियों पर अपना अड्डा बनाते हैं. और इसीलिए उनतक पहुंचना आसान नहीं होता.

37 नक्सली किए थे ढेर 
हमारे देश में ऐसे बुद्धिजीवियों और मीडिया के लोगों की संख्या काफी ज़्यादा है, जो कश्मीर में आतंकवादियों का समर्थन करते हैं और देश के नक्सल प्रभावित इलाकों में नक्सलवादियों का खुलकर पक्ष लेते हैं. जबकि ये दोनों ही बेहिचक निर्दोष लोगों और सुरक्षाबलों का खून बहाते हैं. लेकिन, अब ये स्थिति बदल रही है. 24 अप्रैल 2018 को यहां सुरक्षाबलों ने 37 नक्सलियों को मार गिराया था. इसके बाद से लगातार सुरक्षाबलों ने यहां नक्सलियों के खिलाफ लगातार ऑपरेशन किए.

नक्सली हिंसा और मुख्यधारा? 
जानकार बताते हैं कि साल 2014 से पहले नक्सली हिंसा की समस्या अधिक गंभीर तरीके से उभरी और यह देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खासा मुश्किलें खड़ी करती रही. हालांकि 2014 के बाद नक्सली हिंसा में थोड़ी कमी आई और सुरक्षाबलों द्वारा नक्सलियों पर कार्रवाई भी की घई लेकिन 2 दशकों से भी अधिक समय से बनी हुई यह समस्या एक बार में हल नहीं हो सकती है. इन सालों में पूरे मध्य भारत में नक्सल आंदोलन का विस्ता़र हो गया है और यह लाल गलियारे के नाम से चर्चित भी हुआ.

इस आंदोलन की शुरुआत एक विचारधारा के स्तर पर हुई थी. नक्सल हिंसा की घटनाएं पहले भी सामने आती थीं,पर इसका स्वरूप इतना विकराल नहीं था जितना आज है. आए दिन नक्सल प्रभावित राज्यों में कभी सुरक्षा बलों के जवानों तो कभी निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतारे जाने की घटनाएं सामने आती रहती हैं. यू कहें कि पिछली सरकारों ने इस ओर कभी गंभीरता से देखा ही नहीं. जिसका परिणाम यह हुआ कि नक्सलवाद और पनपता गया और ग्रामीण क्षेत्रों में इसका खासा विस्तार हो गया.

नक्सली अपने उद्देश्यों को साधने के लिए आदिवासियों के क्षेत्र और मुद्दों का सहारा लेते हैं. झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आदि राज्यों में माओवादी कैडरों ने इतनी गहरी जड़ें जमा ली हैं कि इसे सिर्फ सुरक्षा बलों के सहारे अभियान चलाकर पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता है.

जानकार बताते हैं कि इस नीति को कामयाब बनाने के लिए सार्थक सोच का होना भी बहुत जरूरी है. जब कोई माओवादी सरेंडर करता है तो लाजिमी है कि उसकी समाज की मुख्यधारा में वापसी हो रही है. पर इसे बनाए रखने के लिए हर उस शख्स को सरकारी स्तर पर वह सुविधाएं मिलनी चाहिए ताकि वह फिर माओवाद की विचारधारा के गिरफ्त में नहीं आ सके.

नक्सल समस्या पर गहरी पकड़ रखने वाले यह भी बताते हैं कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में यदि कोई चीज सबसे कारगर हो सकती है तो वह है विकास. इलाकों में अभियान चलाकर विकास कार्यक्रमों पर जोर देना खासा जरूरी है. तभी हम नक्ससल विचारधारा से लोगों को दूर रखने में कुछ कामयाबी पा सकते हैं. आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर जो चुनौतियां गंभीर तरीके से उभरी हैं, उनसे निपटने के लिए काफी अधिक प्रयास करने की दरकार है.