परलकोट क्षेत्र के ग्रामीण इन दिनों जंगलों से चार बीज एकत्रित करने में व्यस्त हैं। इसके पूर्व ग्रामीण महुआ बिनने में जुटे हुए थे। इस क्षेत्र में धान और मक्का की भी अच्छी पैदावारी होती है लेकिन चार बीज भी इस क्षेत्र के ग्रामीणों के लिए अच्छी आमदनी का जरिया बन गया है। परलकोट क्षेत्र जंगलों से घिरा हुआ है। इस क्षेत्र के लोगों को वनों से भी अच्छी आमदनी मिलती है।
चार बीज भी एक वनोपज है। इससे निकले चिरौंजी की बिक्री कर ग्रामीण अच्छी आय अर्जित कर लेते हैं। पहले ग्रामीण चार को पकने के बाद तोड़कर लाते थे और अपने घरों में इसका बीज निकालते थे, लेकिन कुछ वर्षों से गुठली सहित चिरौंजी की खरीदी होने से कच्चे चार तोड़ने लगे हैं।
हालांकि पके चार से ग्रामीणों को दोहरा लाभ मिलता है। इसका ऊपरी हिस्सा मीठा होता है, जिसे ग्रामीण चाव से खाते हैं। मड़डू राम गावड़े, बिष्णुराम गावड़े, मानूपददा ने बताया कि हम ग्रामीणों को चार बीज का सही दाम बिचौलियों से नहीं मिल पाता। वनोपज से संबंधित लाख, महुआ, हर्रा का भी कोई खरीदार नहीं है।
शासन द्वारा इसे खरीदा जाना चाहिए ताकि हमें वनोपज का वाजिब दाम मिल सके। शासन द्वारा इन वनोपजों की खरीदी नहीं किए जाने से मजबूरी में हमें हाट बाजार में बिचौलियों को कम भाव में वनोपज बेचना पड़ता है।
ग्रामीणों ने बताया कि वर्तमान में 130 रुपये प्रति किलो के हिसाब से व्यापारी चार बीज की खरीदी कर रहे हैं। पेड़ों की करते हैं निगरानी अनेक ग्रामीण चार को पकने के बाद ही तोड़ते हैं। इसके लिए वे सुबह-शाम अपने पेड़ों की निगरानी करते रहते हैं। हालांकि कई ग्रामीण कच्चे चार को ही तोड़ने में जुटे हुए हैं, इसके चलते पर्याप्त रूप से पके चार का स्वाद नहीं मिल पा रहा है। जबकि पहले बाजारों में पर्याप्त रूप से पके चार मिलता था।
बीज को पानी में डालकर परखते हैं गुणवत्ता ग्रामीणों ने बताया कि चार की गुठलियों को पानी में डालकर इसकी गुणवत्ता परखी जाती है। इसका दर निश्चित करने के लिए कुछ गुठलियों को पानी में डालते हैं। ठोस गुठली पानी में डूब जाती है और हल्की गुठली ऊपर आ जाती है। पानी में डूबे गुठलियों को अच्छी किस्म की गुठलियां मानी जाती है।