देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा रहे नक्सलियों से मुकाबला करने के लिए अब तक तो हमने यह सुना था कि सुरक्षा बल नई रणनीति अपना रहे हैं, आधुनिक हथियार ले रहे हैं या फिर उनके हमले का जवाब देने के उनके शीर्ष कमांडरों को निशाना बना रहे हैं. वहीं अब क्रिकेट के खेल से नक्सलियों को हराने की कोशिश की जा रही है और यह काफी हद तक कामयाब भी दिख रही है. ऐसा एक नए प्रयोग की वजह से हुआ है. यह प्रयोग है नक्सलियों के गढ़ चिंतागुफा (सुकमा) में हो रहे डे नाइट क्रिकेट मैच का, जहां क्रिकेट अब नक्सलियों के पैतरों से लोहा ले रहा है.
डे नाइट क्रिकेट क्या होता है, क्रिकेट की बॉल कई तरह की क्यों होती है. रात में कैसे लोग क्रिकेट खेलते हैं. सचिन तेंदुलकर, रिकी पोंटिंग, विराट कोहली कौन है. यह कुछ ऐसे सवाल हैं जिन्हें नक्सलियों के गढ़ चिंतागुफा में सीआरपीएफ की बटालियन के जवानों ने बच्चों से किया और उन्हें उसका जवाब नहीं मिला.
यह बच्चे स्कूल कभी-कभार जाते थे और सिर्फ बैट और एक गोल आकार में बनाई हुई गेंद से क्रिकेट खेलते थे. उन्हें यह तो मालूम था कि यह क्रिकेट का खेल है इसमें 1 बैट होता है और एक बॉल होती है. जब रोशनी होती है तब इसको खेला जाता है, लेकिन किन-किन जगहों पर खेला जाता है और किस हद तक यह भारत के कोने-कोने में बसा है यह इन्हें मालूम नहीं था. सीआरपीएफ के जवानों ने उन्हें क्रिकेट का महत्व और उसके खुमार के बारे में बताया.
इसके बाद से इस चिंतागुफा इलाके में आए दिन क्रिकेट मैच होते रहते हैं. स्थानीय बच्चे इसमें हिस्सा लेते हैं. टूर्नामेंट होता है टीम जीतती है और क्रिकेट का जश्न मनाया जाता है. यह सारे बच्चे उसी परिवार से ताल्लुक रखते हैं जिनके सदस्य कभी न कभी नक्सलियों से ताल्लुक रखते थे, लेकिन अब क्रिकेट की वजह से यह उन नक्सलियों से दूर होते जा रहे हैं.
दरअसल, चिंतागुफा इलाका देश के सर्वाधिक नक्सल प्रभावित इलाकों में से एक है. पुलिस स्टेशन चिंतागुफा, गांव चिंतागुफा यह नाम सुनते ही एक सिहरन पैदा हो जाती है आम इंसान के मन में, क्योंकि ये वो इलाका था जहां वर्ष 2010 में 76 सीआरपीएफ के जवानों को नक्सलियों ने मार दिया था. वहीं 2017 में 27 सीआरपीएफ के जवानों को मारा था और 2018 में आईईडी धमाके में 9 सीआरपीएफ जवान शहीद हो गए थे.
इसके अलावा छोटे-बड़े हमले इस दौरान नक्सलियों ने सुरक्षाबलों पर किए. सुरक्षाबलों ने भी जवाबी कार्रवाई की और नक्सलियों के कई काडरों का सफाया किया. दोनों ओर बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा था, लेकिन वर्ष 2018 के अंत में हालात बदलने लगे. जब सुरक्षाबलों का इस इलाके में नियंत्रण और मजबूत होने लगा और क्रिकेट को इस इलाके में लाया जाने लगा.
यह क्रिकेट के ही प्रभाव का नतीजा है कि करीब 500 बच्चे जो चिंतागुफा के आसपास के इलाकों में हैं, वह अब इस तरीके के क्रिकेट टूर्नामेंट में हिस्सा ले रहे हैं. इसमें वहां की ही स्थानीय टीमें होती हैं. सीआरपीएफ की 206 कोबरा बटालियन की टीम अपनी मुख्य ड्यूटी के अलावा यह भी सुनिश्चित करती है कि चिंतागुफा इलाके के बच्चे टीम का हिस्सा बनें, टूर्नामेंट हो, जीत हो और जीत का जश्न मनाया जाए. नक्सल गतिविधियों को भूल व शिक्षा और क्रिकेट के खेल को अपने जीवन का मकसद समझते हैं. इसी वजह से बढ़ चढ़कर वे लगातार ऐसे टूर्नामेंट में हिस्सा लेते हैं.