Home देश पेंट, स्याही में डलता है जो जहर, उसे क्यों मिलाया जाता है...

पेंट, स्याही में डलता है जो जहर, उसे क्यों मिलाया जाता है कफ सिरप में? वो भी लिमिट से कई हजार गुना ज्यादा

5
0

राजस्‍थान और मध्‍य प्रदेश में हाल ही के दिनों में कफ सिरप पीने से 16 बच्चों की मौत से देश सदमे में है. तमिलनाडु औषधि नियंत्रण विभाग की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि जिस कोल्ड्रिफ सिरप को बच्‍चों को दिया गया था उसमें डाई एथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) की मात्रा स्वीकार्य स्तर से अधिक पाई गई है. इस रिपोर्ट के बाद कई राज्‍यों ने कोल्ड्रिफ सिरप पर बैन लगा दिया गया. मध्य प्रदेश के औषधि नियंत्रक की जांच में भी सामने आया है कि सिरप में डायथिलीन ग्लाइकॉल (डीईजी) की मात्रा 48% से ज्यादा पाई गई, जबकि स्वीकार्य सीमा केवल 0.1% है. आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस डीईजी को सिरप में मिलाया गया है उसका इस्‍तेमाल ब्रेक फ्लूइड्स, पेंट, स्याही आदि बनाने में होता है. विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन भी कई बार चेतावनी दे चुका है कि दवाओं में इसका इस्‍तेमाल बहुत घातक है. डब्‍ल्‍यूएचओ का यह दावा सच भी साबित हो चुका है, क्‍योंकि डीईजी मिली दवाएं पीने से दुनिया के कई देशों में बच्‍चों की मौत हो चुकी है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर दवा कंपनियां इस ‘जहर’ को दवाओं में मिलाती ही क्‍यों हैं?
इस सवाल का जवाब जानने से पहले हम डीईजी के बारे में कुछ अहम जानकारियां आपको देते हैं. डाई एथिलीन ग्लाइकॉल एक रंगहीन और गंधहीन अल्कोहलिक कंपाउंड है. रेजिन, प्लास्टिसाइजर्स,ब्रेक फ्लुइड, कुछ लुब्रिकेंट, लोशन, क्रीम, डियोडोरेंट आदि में नमी बनाए रखने,रंग, स्याही तथा प्रिंटिंग कार्यों में सॉल्वेंट और घुलनशील योजक के रूप में किया जाता है. अगर हम साधारण शब्‍दों में कहें तो यह जहर है और इसे खाद्य पदार्थों से दूर रखने की ही सिफारिश की जाती है. यह इतना घातक है कि एक किलोग्राम में 1 से 2 मिलीलीटर एथिलीन ग्लाइकॉल मिलाने पर ही यह इंसान के लिए जानलेवा साबित हो सकता है. यही वजह है कि भारत में कुछ दवाओं में इसे 0.01 फीसदी मात्रा में ही मिलाने की अनुमति है.

ऐसा नहीं है कि दवा बनाने में डाई एथिलीन ग्लाइकॉल डालना कोई मजबूरी है. इसके बिना भी दवाएं बनाई जा सकती हैं. दरअसल, कंपनियां पैसा बचाने के लिए इसका इस्‍तेमाल करती हैं. डाई एथिलीन ग्लाइकॉल (डीईजी) और एथिलीन ग्लाइकॉल का इस्‍तेमाल पीने वाली दवाओं में सॉल्वेंट्स के रूप में किया जाता है. कफ सिरप में इसका यूज उसे मीठा बनाने के लिए भी किया जाता है. वैसे कायदे से सॉल्‍वेंट के रूप में ग्लिसरीन या प्रोपलीन ग्लाइकॉल का इस्‍तेमाल करना चाहिए. क्‍योंकि ये दोनों ही डीईजी के मुकाबले महंगे होते हैं तो कंपनियां अवैध रूप से ज्‍यादा मात्रा में दवाओं में डीईजी मिला देती हैं. मध्‍य प्रदेश में कोल्ड्रिफ सिरप में 48 फीसदी डीआईजी पाया पाया गया, जबकि स्‍वीकृत मात्रा सिर्फ 0.01 फीसदी है.

डाइएथिलीन ग्लाइकोल एक जहरीला पदार्थ है. इसका सबसे ज्‍यादा असर किडनी पर होता है. यह शरीर में जाकर ऑक्सालिक एसिड और ग्लाइकोलिक एसिड जैसे जहरीले तत्वों में टूट जाता है, जो गुर्दों की कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं. इससे गुर्दे फेल होने तक की नौबत आ जाती है.इसके अलावा डीईजी नर्व सिसटम और दिल पर भी असर करता है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here