बस्तर पूरी दुनिया में नक्सलवाद के लिए जाना जाता है। यहां चलने वाली हर एक गोली की आवाज दूर दिल्ली तक सुनाई देती है, लेकिन इन तमाम चुनौतियों के बीच गोलियों से कहीं अलग एक संयुक्त आवाज दुनिया में गूंज रही है। कह रही है कि बस्तर संगीत की देवभूमि है। कला का विश्वविद्यालय है। इसे इस रूप में स्थापित करने वाले रंगकर्मी अनूप रंजन पांडेय को भारत सरकार ने उनके इसी योगदान के लिए पद्मश्री पुरस्कार देने की घोषणा की है। अब गोलियों की आवाज को ढोल दबा रहे हैं…।
बस्तर के 200 से अधिक वाद्ययंत्र बंदूकों पर भारी पड़ रहे हैं…। अनूप रंजन का ‘बस्तर बैंड’ संगीत की दुनिया में तहलका मचा रहा है। बातचीत में पद्मश्री अनूप रंजन कहते हैं- ‘वे पद्मश्री का सम्मान करते हैं, लेकिन यह मंजिल नहीं। बस्तर को समझने के लिए एक जिंदगी काफी नहीं। सीखने, सिखाने का दौर जारी है। देखते हैं कहां तक जाता है।’
बता दें कि अनूप ही वह शख्स हैं जिन्होंने विलुप्ति के मुहाने पर खड़े बस्तर के संगीत, वाद्ययंत्रों की नव-जीवन दिया। उन्होंने सबरंग के लिए से विस्तार से चर्चा की, जीवन के हर दौर के बारे में बताया।