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“सस्ता माल बना चीन का हथियार, ट्रंप टैरिफ के बाद भी ड्रैगन ने बढ़ा दिया निर्यात; भारत पर भी होगा असर”

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चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का निर्यात इंजन पांच महीनों के आसमान छूते अमेरिकी टैरिफ के दौरान अजेय साबित हुआ है, जिससे चीन रिकॉर्ड 1.2 ट्रिलियन डॉलर के व्यापार अधिशेष की ओर तेजी से बढ़ रहा है.

अमेरिका की ओर से टैरिफ लगाए जाने के बावजूद, चीनी निर्माताओं ने दिखाया है कि वे पीछे नहीं हट रहे हैं. अगस्त में भारतीय खरीद अपने सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गई, अफ्रीका को शिपमेंट वार्षिक रिकॉर्ड बनाने की राह पर है और दक्षिण-पूर्व एशिया में बिक्री महामारी के दौर के अपने चरम को पार कर गई है. अगर यह एक्सपोर्ट बढ़ता गया तो स्वदेशी सामानों की डिमांड कम होने लग जाएगी. इसका नुकसान भारत को भी झेलना पड़ सकता है.

टैरिफ से बच रहा है चीन ट्रंप प्रशासन ने चीन पर भारी टैरिफ लगाए, लेकिन बाकी देश  चीन के खिलाफ सख्त कदम उठाने से बच रहे हैं. वो अमेरिका के साथ अपनी ट्रेड वार्ताओं को बिगाड़ना नहीं चाहते. गेवेकल ड्रैगनॉमिक्स के क्रिस्टोफर बेडडोर कहते हैं कि कई देश नहीं चाहते कि उन्हें ग्लोबल ट्रेड सिस्टम को तोड़ने वाला माना जाए. कुछ देश तो अमेरिका को खुश करने के लिए चीन पर टैरिफ लगाने से भी कतरा रहे हैं. इसका फायदा चीन को मिल रहा है. वो सस्ते सामान के दम पर दुनिया भर में अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है. देश इस मौके का फायदा उठाकर सामानों को दुनिया भर के देशों में पहुंचा रहा है.

दुनिया की सावधानी, चीन की चालाकी कई देश चीन के सस्ते सामानों से अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने की कोशिश में हैं, लेकिन सावधानी से कदम उठा रहे हैं. मिसाल के तौर पर दक्षिण अफ्रीका, अफ्रीका ने चीनी कारों का निर्यात दोगुना हो गया, लेकिन वहां के व्यापार मंत्री ने टैरिफ लगाने की बजाय चीन से ज्यादा निवेश मांगा है. चिली और इक्वाडोर में चीनी ई-कॉमर्स कंपनी टेमू के यूजर्स 143% बढ़े, तो इन देशों ने चुपके से सस्ते आयात पर टैरिफ लगाया है. वहीं ब्राजील ने चीनी इलेक्ट्रिक कार कंपनी BYD को टैरिफ-मुक्त मौका दिया, ताकि वो वहां लोकल प्रोडक्शन बढ़ाए.

लेकिन अगर अमेरिका बाकी देशों को चीन के खिलाफ एकजुट कर ले, तो बीजिंग के लिए मुश्किल बढ़ सकती है. ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स के चांग शू और डेविड क्व कहते हैं कि चीन तुरंत जवाबी टैरिफ लगा सकता है, लेकिन इससे उसके सहयोगी देश दूर हो सकते हैं.

चीन शॉक 2.0 ट्रंप ने अप्रैल में भारी टैरिफ की धमकी दी थी, लेकिन उससे पहले ही उभरते बाजार चीनी सामानों की बाढ़ से परेशान थे. इंडोनेशिया के पूर्व राष्ट्रपति ने 200% टैरिफ की बात की थी ताकि लोकल इंडस्ट्री बचे. ब्राजील ने भी चीनी स्टील पर टैरिफ बढ़ाया. वियतनाम ने चीनी ऑनलाइन रिटेल कंपनियों के खिलाफ अस्थायी कदम उठाए. लेकिन चीन के विशाल कारखाने और उनकी सस्ती कीमतें इन कोशिशों पर भारी पड़ रही हैं. गेवेकल ड्रैगनॉमिक्स के आर्थर क्रोबर के मुताबिक, चीन के निर्यातक इतने ताकतवर हैं कि वो टैरिफ की मार झेल लेते हैं. वो ट्रांसशिपमेंट या कम टैरिफ वाले देशों में प्रोडक्शन शिफ्ट कर लेते हैं.

भारत में भी चीन का दबदबा पिछले महीने चीन का भारत को निर्यात 12.5 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जो रिकॉर्ड है. इसके पीछे की मुख्य वजह है कि एपल जैसी कंपनियां भारत में आईफोन बना रही हैं, लेकिन उनके पुर्जे और मशीनें अब भी चीन से आ रही हैं. जुलाई में चीन ने भारत को 1 अरब डॉलर के कंप्यूटर चिप्स और अरबों डॉलर के फोन-पुर्जे भेजे. इस साल का निर्यात 2021 के पूरे साल के बराबर हो चुका है.

निर्यात पर कंट्रोल करने की मांग हालांकि, वाणिज्य मंत्रालय की जांच इकाई डीजीटीआर ने चीन से आयात होने वाले कोल्ड रोल्ड नॉन-ओरिएंटेड इलेक्ट्रिकल स्टील पर पांच साल तक डंपिंग रोधी शुल्क लगाने की सलाह दी है. इसका मकसद भारतीय कंपनियों को सस्ते आयात से बचाना है. डीजीटीआर की जांच में पता चला कि यह उत्पाद भारत में सामान्य कीमत से कम पर बेचा जा रहा है, जिससे डंपिंग हो रही है. कुछ चीनी कंपनियों पर 223.82 डॉलर प्रति टन और कुछ पर 414.92 डॉलर प्रति टन शुल्क लगाने की सिफारिश की गई है.