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आदिवासियों की खोवर व सोहराई कला को विदेशों में पहचान दिलाने वाले बुलू इमाम को पद्मश्री सम्मान

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सांस्कृतिक क्षेत्र में सराहनीय योगदान के लिए पद्मश्री पाने वाले झारखंड के बुलु इमाम का जन्म 31 अगस्त 1942 को हुआ. बुलू पर्यावरण कार्यकर्ता के तौर पर झारखंड में आदिवासी संस्कृति और विरासत को संरक्षित करते रहे हैं. इसके लिए उन्हें 12 जून 2012 को लंदन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स में गांधी इंटरनेशनल पीस अवार्ड से सम्मानित किया गया. बुलू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे सैयद हसन इमाम के पोते हैं.

बुलू इमाम साल 1987 से इंटक हजारीबाग चैप्टर के संयोजक रहे हैं. 1991 में उन्होंने इस्को में झारखंड की पहली चट्टान कला की खोज की. बाद में उत्तरी कर्णपुरा घाटी में दर्जन भर से अधिक चट्टान कला स्थल का खोज किया. 1993 में उन्होंने खोवर (विवाह) कला और मिट्टी के घरों की दीवारों पर चित्रित सोहराई (फसल) कला को दुनिया के सामने लाया.

1995 में जनजातीय कला को बढ़ावा देने के लिए हजारीबाग में संस्कृति संग्रहालय और आर्ट गैलरी की स्थापना की. ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और यूके में खोवर और सोहराय चित्रों की 50 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों का आयोजन किया. वह पुस्तक ब्राइडल केव्स के लेखक हैं. उन्होंने आदिवासी कला और संस्कृति पर कई फिल्में भी बनाई हैं.

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