अमेरिका ने भारत के लिए टैरिफ बातचीत की समयसीमा 1 अगस्त तय की थी लेकिन उन्होंने उससे एक दिन पहले ही 25 फीसदी टैरिफ लगा दिया है. हालांकि अब तक तो भारत और अमेरिका के व्यापारिक रिश्ते मजबूत रहे हैं, जिसका सकारात्मक असर भारत की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा. अब अमेरिका के इस कदम के बाद भारत पर क्या असर पड़ने वाला है. क्या इससे भारतीय उद्योगों और अर्थव्यवस्था पर कोई असर पड़ने वाला है. हालांकि इस कदम के बाद कई देशों की अमेरिकी बाजार में चांदी होने वाली है.
ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पोस्ट में लिखा, “हालांकि भारत हमारा मित्र है, लेकिन हमने पिछले कुछ वर्षों में उनके साथ अपेक्षाकृत कम व्यापार किया है, क्योंकि उनके टैरिफ बहुत अधिक हैं, जो विश्व में सबसे अधिक हैं. उनके यहां किसी भी देश की तुलना में सबसे कठोर और अप्रिय गैर-मौद्रिक व्यापार बाधाएं हैं.”
कितना आयात – निर्यात
2024 में भारत ने अमेरिका को 87.4 अरब डॉलर का सामान निर्यात किया, जबकि अमेरिका से 41.8 अरब डॉलर का आयात किया, जिससे अमेरिका को 45.7 अरब डॉलर का व्यापार घाटा हुआ. भारत के प्रमुख निर्यात में दवाइयां, कपड़ा, रत्न-आभूषण, इलेक्ट्रॉनिक्स और स्टील-एल्यूमीनियम शामिल हैं. भारत से अमेरिका को बड़े पैमाने पर निर्यात होता है, ये हमारे कुल निर्यात का लगभग 18% हिस्सा है.
आगे बढ़ने से पहले ये जान लेते हैं कि अमेरिका के टैरिफ संबंधी कदमों के बाद किस देश के सामान अमेरिकी बाजारों में सबसे सस्ते होंगे और उन्हें इसका सबसे ज्यादा फायदा होने जा रहा है तो किस देश के सामान महंगे हो जाएंगे.
कनाडा और मेक्सिको जैसे देशों की सबसे ज्यादा चांदी होगी. इन दोनों देशों से यूएस में आयातित USMCA‑compliant सामानों पर फिलहाल 0% टैक्स लागू है. जाहिर सी बात है इस वजह से उनके सामान अमेरिकी बाजार में सबसे सस्ते मिलेंगे तो उनकी मांग में बढोतरी हो जाएगी. यूरोपीय संघ (EU), जापान, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया के सामान भी अमेरिका में अपेक्षाकृत भारत से सस्ते मिलेंगे. क्योंकि इन देशों की अधिकांश वस्तुओं पर 15% की टैरिफ दर तय हुई है.
किन देशों के लिए अमेरिकी बाजार हुए मुश्किल
सबसे महंगे सामान जिस देशों के होने वाले हैं, उसमें ब्राजील, चीन और भारत जैसे देश शामिल हैं. ब्राज़ील से आयातित वस्तुओं पर अमेरिका ने 50% की भारी टैरिफ दर लागू की है. यह मौजूदा समय में सबसे अधिक दर है. कनाडा के वो सामान जो USMCA में शामिल नहीं हैं, उन पर 25–35% टैरिफ होगा लेकिन उसमें उसके बहुत कम ही सामान शामिल होंगे. चीन के सामान पर 30% टैरिफ है लेकिन इसे बहुत सी चीजों पर और ज्यादा भी रखा जा सकता है. इससे ये तो जाहिर है कि भारत के लिए अमेरिकी बाजार में मुश्किलें बढऩे वाली हैं.
भारत को कहां कहां असर
भारत से अमेरिका को सबसे ज्यादा कपड़े का निर्यात होता है. 2023-24 में 36 अरब डॉलर का कपड़ा निर्यात हुआ, जिसमें से 28% (करीब 10 अरब डॉलर) अमेरिका को गया. उच्च टैरिफ से भारतीय कपड़ों की कीमत बढ़ेगी, जिससे उनका बाजार वहां कम हो सकता है जाहिर सी बात है कि इससे उनके निर्यात के आर्डर पर असर पड़ेगा.
भारत से हीरा और रत्न उद्योग 9 अरब डॉलर से अधिक का निर्यात करता है. टैरिफ से इसकी मांग घट सकती है, क्योंकि अमेरिकी उपभोक्ता लागत बढ़ने पर अन्य स्रोतों की ओर रुख कर सकते हैं.
भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों की रफ्तार धीमी पड़ेगी क्योंकि 14 अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात का सामना अब नए टैरिफ से होगा. भारतीय कंपनियों की वृद्धि धीमी पड़ सकती है. भारतीय स्टील और एल्यूमीनियम की मांग पर भी असर पड़ेगा, इसकी वहां काफी डिमांड भी रही है लेकिन अब तस्वीर बदल जाएगी.
सबसे राहत की बात ये है कि भारत का 12.2 अरब डॉलर के दवा निर्यात को टैरिफ से अलग रखा जाएगा तो ये क्षेत्र राहत ले सकता है. ये भारत के लिए सकारात्मक पहलू है.
क्या आईटी को लगेगा झटका
भारत का आईटी क्षेत्र अमेरिकी बाजार पर निर्भर है, बेशक इस पर टैरिफ का असर सीधे सीधे तो नहीं होगा लेकिन टैरिफ का असर जब अमेरिकी उपभोक्ता की जेब पर पड़ने लगेगा, वहां भी चीजें महंगी हो जाएंगी तो इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव आईटी सेक्टर पर पड़ेगा ही.
जीडीपी पर क्या असर पड़ेगा
विशेषज्ञों का अनुमान है कि 25% टैरिफ से भारत की जीडीपी में 0.19% की कमी आ सकती है, जो प्रति परिवार औसतन 2396 रुपये की वार्षिक हानि के बराबर है. हालांकि ये प्रभाव सीमित है, क्योंकि भारत की वैश्विक निर्यात में हिस्सेदारी केवल 2.4% है.
क्या भारत के विदेशी मुद्रा पर असर पडे़गा
बिल्कुल पड़ेगा. टैरिफ के बाद रुपये में कमजोरी देखी गई, जो 85.69 के स्तर तक पहुंच गया. निर्यात में कमी से विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ सकता है.
क्या भारत की अर्थव्यवस्था पर असर होगा?
नहीं, भारत की अर्थव्यवस्था पर बहुत असर नहीं पड़ने वाला. भारत की अर्थव्यवस्था 3.73 ट्रिलियन डॉलर की है और यह दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. 2023 में इसकी विकास दर 6.3% थी, जो वैश्विक औसत 2.9% से कहीं अधिक है. भारत की घरेलू मांग मजबूत है, जो अर्थव्यवस्था को 6.5-7.5% की विकास दर पर बनाए रखेगी, लिहाजा उस पर टैरिफ का प्रभाव सीमित होगा.
क्या ये टैरिफ अस्थायी होगा, इसमें करेक्शन हो सकता है
भारत और अमेरिका के बीच 25 अगस्त 2025 को व्यापार वार्ता का अगला दौर होने वाला है. भारत 10% से कम टैरिफ की मांग कर रहा है. अमेरिका अपने कृषि और डेयरी उत्पादों के लिए भारतीय बाजार में रियायत चाहता है. एक व्यापक समझौता टैरिफ को कम कर सकता है और दोनों देशों के लिए फायदेमंद होगा. भारतीय अधिकारी आशावादी हैं कि सितंबर या अक्टूबर तक एक समझौता हो सकता है, जो टैरिफ को अस्थायी बनाए रख सकता है।
क्या भारत अब नए बाजारों की तलाश करेगा
बिल्कुल भारत को ये करना ही होगा. भारत को यूरोपीय संघ, जापान, और आसियान देशों जैसे वैकल्पिक बाजारों पर ध्यान देना चाहिए. इन क्षेत्रों में भारत के निर्यात को बढ़ाने से अमेरिकी टैरिफ का प्रभाव कम हो सकता है.
क्या इसका असर अमेरिका पर भी होगा
अमेरिकी कंपनियां भी कई कच्चे माल और कंपोनेंट्स का आयात करती हैं. उन पर भी टैरिफ लगने से मैन्युफैक्चरिंग की लागत बढ़ेगी. इससे अमेरिकी उत्पाद भी महंगे होंगे और निर्यात कम हो सकता है. बैंक ऑफ अमेरिका और जेपी मोर्गन जैसे वित्तीय संस्थानों ने चेताया है कि यदि टैरिफ लंबे समय तक रहे तो GDP ग्रोथ घट सकती है. खपत गिर सकती है, जिससे खुदरा और सेवा सेक्टर प्रभावित होंगे. छोटे बिज़नेस पर दबाव बढ़ेगा जो विदेशी सप्लाई चैन पर निर्भर हैं.
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