छत्तीसगढ़ की काशी कहे जाने वाले लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर में सावन मास की श्रद्धा का सैलाब उमड़ रहा है. खरौद में स्थित यह प्राचीन शिवधाम अपनी रहस्यमयी शिवलिंग और रामायणकालीन कथा के कारण भक्तों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है. कहा जाता है कि भगवान राम और लक्ष्मण ने खर और दूषण के वध के बाद ब्रह्म हत्या दोष से मुक्ति पाने महादेव की स्थापना की थी
रायपुर से महज 136 किमी दूर जांजगीर-चांपा जिले के खरौद में स्थित यह मंदिर रामायणकालीन कथा से जुड़ा है. मान्यता है कि भगवान राम और लक्ष्मण ने खर-दूषण वध के बाद इसी स्थान पर शिवलिंग की स्थापना कर ब्रह्म हत्या दोष का निवारण किया था. महाशिवरात्रि और सावन में यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है.
इस शिवलिंग में एक लाख छोटे-छोटे छिद्र हैं, जिससे यह ‘लक्षलिंग’ या ‘लखेश्वर’ कहलाता है. कहा जाता है कि इसमें एक छेद ऐसा भी है, जो पाताल लोक तक जाता है. भक्तों का विश्वास है कि इसमें अर्पित जल पाताल में समा जाता है, जबकि एक छेद हमेशा जल से भरा रहता है, जिसे ‘अक्षय कुण्ड’ कहा जाता है.
मंदिर में मनोकामना पूर्ण करने की मान्यता पर श्रद्धालु सफेद कपड़े के थैले में भरकर एक लाख चावल अर्पित करते हैं. इसे ‘लक्ष्य’ या ‘लख चावल’ कहा जाता है. यह परंपरा आज भी जीवित है और सावन में भक्त विशेष रूप से यह भेंट चढ़ाते हैं.
वन गमन परिपथ में इस मंदिर का विशेष स्थान है. सावन के हर सोमवार और महाशिवरात्रि पर यहां विशाल मेला और जलाभिषेक के लिए भक्तों का जनसैलाब उमड़ता है. साथ ही श्रृंगार भी भव्य रूप से किया जाता है.
माना जाता है कि खर और दूषण का वध करने के कारण इस स्थान का नाम ‘खरौद’ पड़ा. यह स्थल रायपुर से 136 किमी और शिवरीनारायण से मात्र 3 किमी की दूरी पर स्थित है. लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत में भी अमूल्य स्थान रखता है.